सहसा हर तरफ, क्यों नज़र आने लगे बेख़ौफ ख़ूनी चेहरे..!या फिर, छाया है मज़हबी ताम लाल रंग, मेरी आंखों में ?बेख़ौफ = भयहीन; ताम = खूंख़ार;मार्कण्ड दवे । दिनांकः १३ ओक्टॉबर २०१६.
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वाह…..कमाल कर दी…आईना दिखाने में….लाजवाब………
बहुत बहुत धन्यवाद श्री शर्मासाहब…
बहुत ही बढ़िया . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. दवे साहब !!
बहुत बहुत धन्यवाद श्री सर्वजित सिंह जी…
bahut hi umda sir……………………………
बहुत बहुत धन्यवाद श्री मनी जी….
Very true……………..
बहुत बहुत धन्यवाद श्री शिशिर जी…
बहुत बढिया………
बहुत बहुत धन्यवाद श्री डॉ. विवेक जी…
बेहतरीन रचना………………..अति सुंदर…………..
मेरी दो बहुमूल्य रचनाएँ आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हेतु प्रतीक्षारत हैं. कृपया पढ़कर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
“काश ! चाँद छिपता चांदनी के बिन…” और “वक़्त जो थोड़ा ठहरता…”
बहुत बहुत धन्यवाद श्री विजय कुमार सिंह जी…
बहुत ही खूबसूरत……….. ।
बहुत बहुत धन्यवाद श्री काजल जी….
LOVELY ……………..!1
बहुत बहुत धन्यवाद श्री निवातियाँ जी…
Bahut hi badiya..Sir!!!!