सफर तनहा नही रहता संग तुम चलते हो जब भी।प्रेम बिखरा नही रहता मुझमे बसते हो जब भीतुम्हारे ख्वावों में आता हूँ ,मेरे ख्वावों में आ जाओ।मैं तुम में साँस लेता हूँ ,तुम मुझमे आकर समां जाओ
खड़ा हूँ जिस सफर में मै ,संग संग चलने आ जाओ।नज़र के तीर छेड़ो तुम और हमसे मिलने आ जाओ।
नदी को देखता हूँ जब भी तुम्हारी याद आती है।मुझे तस्वीर भी अक्सर बहुत कुछ बोल जाती है।जरा सा रुख मोड़ो और सागर में मिलने आ जाओ।चांदनी हो तुम रातों की ,प्रिये फिर ढलने आ जाओ।
डगमती लौ मुझ की दीपक ,हाथों से ढकने आ जाओ।नज़र के तीर छेड़ो तुम और हमसे मिलने आजाओ।
बहुत प्यास हूँ सदियों से मुझे नदिया में झुकना है।अंजुली भर रहा पानी से ,मुझे आईने में देखना है।टपकते नीर को हाथों से ,प्रिये तुम थामने आ जाओ।खुसक है चहरे पर मेरे ,नमी से शीतल कर जाओ।
व्यंग छोडूंगा तुम संग,बस हँसने आ जाओ।नज़र के तीर छेड़ो तुम और हमसे मिलने आ जाओ।
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Lovely ………………………
अति सुन्दर…………
बहुत ही सूंदर दवे जी।
बहुत सूंदर लिखी है तुमने कविता प्रेम। बहुत अच्छे।
अति सुन्दर………………………………………