जिन्दगी में तुम्हारी चाहत की रोशनी हुयीहम अँधेरो से मिलना भूल गयेतुम ही हो अब मेरी मंजिल का पतासूनी डगरो पर हम चलना भूल गयेढूँढती थी आंसमाँ में मोहब्बत का सितारातुम जैसा चाँद मिला हम सितारो को निहारना भूल गयेहिलोरे लेती थी मेरी कश्ती जिन्दगी के समुन्दर मेंतुम मिले मांझी बनकर हम डगमगाना भूल गयेआँखों से तुम्हारी बफा का दीपक जलेअँधेरी रातो में हम चिराग जलाना भूल गयेगमो के गुलशन में तुम फूल बन मिलेकाँटो के दामन में हम फसना भूल गयेमोहब्बत का सावन कुछ ऐसा बरसापतझङ की उजङी बहारो से हम मिलना भूल गयेहर घङी तुममें ही कुछ ऐसे उलझेबेबजह मुकद्दर से हम उलझना भूल गयेसंजोया था ख्वाब मुद्दतो तक तेरी खातिरख्वाब जब हकीकत बना हम ख्वाब देखना भूल गयेगुम थी बरसो से किसी और जहाँ मेंतुम को पाकर मुकम्मल हुए हम खुद को ढूँढना भूल गये।-आस्था गंगवार
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Last line needs modification. Like ” tumko paakar mukakammal jo hue……..”. Otherwise it is a beautiful worl.
अंतराजी….लाजवाब भावों से रचित है आपकी रचना….बेहद ही खूबसूरत……जैसा मधुकरजी ने कहा…अंतिम पंक्ति में वो कशिश कम सी हुई है….आप “तुम को पाकर मुकम्मल हुई जो ज़िन्दगी हम खुद को ढूँढना भूल गये या खुद को भूल गए” आप को जंचता क्या यह…. बहुत बड़ी कमी नहीं है ये बस कशिश सी कम है थोड़ी…लिखते रहियेगा……
ji bahut bahut sukriya …..aap sabhi ka…..last line ki kasis bapas layi gyi hai…..
प्यार की खूबसूरत अभिव्यक्ति, सुन्दर रचना।
ह्रदय की भावनाओ का खूबसूरत सृजन ………..अति सुन्दर !!