लम्बी खामोशी के बादएक दिन आवाज आई“चलो फिर मिलते हैं’तीर सी सिहरनसमूचे वजूद को सिहरा गईकुछ देर की चुप्पीऔर अन्तस् से एक आवाज उभरीऐसा है – “वक्त गुजर गया”अब की बार नहीअगली बार मिलेंगेबहुत काम बाकी हैंजो हमारे साझी थेकुछ मेरे और कुछ तुम्हारेतुम्हारे पास शायद फुर्सत हैकुछ पुनरावलोकन कर लोअगली बार ऐसा करनामेरे और तुम्हारे काम साझा करनाअगर उसने चाहा तोतो एक बार और सही“चलो फिर मिलते हैं .”
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“मीना भारद्वाज”
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बेहद खूबसूरत …..अंतर्द्वंद की दूरियाँ……
हार्दिक आभार शर्मा जी !!
BAHUT BADIYA…………………..
Thanks Mani ji .
बहुत ही अंतर विरोधी भाव लिए आपकी कविता बहुत सूंदर है मीना जी।
आप की अमूल्य प्रतिक्रिया के तहेदिल से शुक्रिया मन्जूषा जी !!
प्यार भी है और नाराजगी भी नहीँ गई.क्या मम स्पर्शी भाव हैं बेहतरीन
आप की प्रतिक्रिया सदैव और बेहतर लिखने को प्रेरित करती है शिशिर जी !!
बहुत ही खूबसूरत रचना…………. मीना जी ।
काजल जी आप की सराहना के लिए तहेदिल से धन्यवाद !!
मीना जी आपमें भावनाओ को अनूठे रूप में प्रस्तुत करने की विशेष कला है !!
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से धन्यवाद निवातियाँ जी .आप जैसे गुणीजन की प्रतिक्रिया लेखन के प्रति रुझान को द्विगुणित करती है ।
Behetareen rachna antardwand ko darshati.
बहुत ही खूबसूरत रचना………………………
तहेदिल से आभार विजय जी !
बेहद खुबसूरत रचना मैम…………….
Thanks a lot Alka ji.