दिल में चल रहा एक अन्तर्द्वन्द है,पूँछ रहा बार बार ये मन है,बाहर से खिलता कमल हूँ ,मन में क्यूँ दुःख का चमन है,कलियों सी मुस्कान है ये,फिर दिल में क्यूँ काँटो की चुभन है,औरों के दर्द की दवा हूँ,खुद के जख्म क्यूँ नासूर बने हैं,दूसरों के आंसुओं को पोछती हूँ,फिर मन में क्यूँ आंसुओं के सैलाब बने हैं,हर पल हँसने और हँसाने वाली,अन्दर ही अंदर क्यूँ बेजान बनी है,मजबूत है ये शख्सियत इतनी,फिर दिल की इतनी नाजुक क्यूँ है,दिल में चल रहा एक अन्तर्द्वन्द है,पूँछ रहा बार बार ये मन है।।By:Dr Swati Gupta
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Very beautifully expressed …………..
Thanks a lot..Sir for your comment..
Waha ! kya baat hai bahut khub Swati ji
Thanks a lot Rajeev ji!!!
LOVELY CREATION …………………..!!
Aapka bahut bahut dhanywad sir!!
bahut bahut sunder rachna apki……….dr swati ji……………………..
Aapka bahut bahut aabhar sir!!!
बहुत ही सुंदर रचना………………………………….
Thanks a lot vijay ji!!!!
स्वातिजी…….बेहद खूबसूरत…….अंतर्द्वंद का चित्रण…….
Aapka bahut bahut dhanywad sir!!!
स्वाति जी बहुत ही सुंदर रचना………… ।