कैसे वो बिन सोचे कुछ भी कह जाते है lबिन हड्डी की वो , ज़बान चला जाते है llहर किसी का वो यूँ ही मज़ाक बनाते है lअपनी बारी पर,वो यूँ गुस्सा हो जाते है llअच्छा है बोलना, हमें बोलना चाहिए lबोलने से पहले , हमें तोलना चाहिए llतीखे शब्दों के बाण दिल चिर जाते है lजिंदगी भर का , गमे दुःख दे जाते है llआसान है किसी को पराया बनाना lमुश्किल है अपनों को जोड़ पाना llऐसा बोलों जो दिल को छू जाये lरोते चेहरे पर मुस्कान खिल जाये llमीठे शब्द मीठा खाने से नहीं आते lस्वयं महसूस करने से समझ आते llमीठे बोल बिगड़ा काम सवार देते है lवही कड़वे बोल, काम बिगाड़ देते है llचाहे कम बोलों पर मीठा बोलों तुम lख़ुशी न दे सको तो दुःख ना दो तुम llशब्दों के जादू को जब जान जाओगे lनफरत की आग तभी मिटा पाओगे ll—————–
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आत्मवलोकन करने को बल प्रदान करती शिक्षाप्रद रचनात्मकता ……….बहुत अच्छे राजीव जी !!
सराहने के लिए धन्यवाद निवितिया जी l
सराहने के लिए धन्यवाद निवितिया जी
saty vachan,,,,feka pather…..kahe baat kabhi vapis nahi aati….isliye soch samjh kar bolo…..bahut badiya sir
धन्यवाद मनी जी l
Very beautifully written Rajiv ji…….
शुक्रिया शिशिर साहब l
Bahut bahut bahut hi sundar aur sahi baat kahi hai aapne.. Rajeev ji????
Thank u ,Thank u, Thank u so much Swati ji
बहुत ही सुंदर रचना है. यूँही लिखते रहिये…………..
सत्यपरक बेहद उम्दा…………
बहुत सरल और खूबसूरत कविता है आपकी । आप इस कविता के माध्यम से जो संदेश देना चाहतें हैं ,उसमे आप पूरी तरह सफल हुए हैं। बहुत अच्छे जा रहें हैं आप राजीव। मुझे याद है कि बचपन में हम लोगों को सिखाया जाता था कि पहले मन के तराजू में तोल कर ही कुछ बोलना चाहिए क्योकि तरकश से निकले तीर और मुँह से निकले शब्द वापस नहीं करे जा सकतें हैं।