जैसे तूने हाथ थामा मुझे खुद से प्यार हों गयादुनियाँ सारी जल गई जब तू मेरा यार हो गयाप्यार का बारूद मेरे सीने में कब से दफन था तेरे लबों ने इसको छूआ रोशन संसार हो गया मुद्दतों तक मैं यहाँ तन्हा इंसान सा मशहूर था तेरे संग मैं हँसने हँसाने वालों में शुमार हो गयामैंने कभी सोचा ना था मावस को चाँद आएगाकुदरत के करम से पर मुझे तॆरा दीदार हो गया आखिर कोई तो बात है तेरे तिल ए रुखसार मेंयूँ ही नहीँ मधुकर उसी पर जाँ निसार हो गयाशिशिर मधुकर
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बेहद खूबसूरत अलफ़ाज़ हैं ग़ज़ल के…..मतले की पहली पंक्ति में ‘आस पास’ का नहीं समझा जब हम उसी की बात कर रहे……
Babbu ji, I have made minor corrections. How does it look noW?
Waaaaaaah…………..
Thankssssssssssssssssssssssssssss…………………….
हम भी आपके शब्दों पे निसार हो गए शिशिर जी अति सुन्दर
Hearty thanks Manoj
bahut hi payare lafz shishir sir…………………………
Thanks Maninder for your valuable words.
कमाल कर दिया सर …पूरी जान ले ली…एक ही पंक्ति ने और मतले ने…..
लाजवाब………
Hearty thanks Babbu ji ………..
बहुत खूबसूरत ………..अति सुन्दर शिशिर जी !
Hearty thanks Nivatiya ji ………
सुन्दर रचना मधुकर जी
Hearty thanks Devendra …………
Very nice poem shishir ji.
So nice of Manjusha ji for reading and appreciating.
बेहतरीन………………….
Hearty thanks Vijay. Your comments were being missed .
प्यार की खूबसूरत अभिव्यक्ति, सुन्दर गजल.
Thank you so very much Dr. Vivek.
शानदार ! जबरदस्त ! जिंदाबाद !
Thank you so very much Vivek ……….
शिशिर जी बहुत ही सुंदर रचना
Thank you so very much kiran ji for your appreciation