भुला कर गिले शिकवे वो प्यार लाएगालालिमा अपने चहरे पर वो साथ लाएगाशीतलता से गर्म स्वभाव को ठंडा कर जायेगाआज घर पर हमारे भी चाँद आएगा
साथ हूँ मै तूम्हारे आज हमको बताएगा।एक पल और एक नज़ारा हमे दिखायेगा।धड़कनें अपनी साथ धड़कायेगा।आज घर पर हमारे भी चाँद आएगा।
ये माना की थोड़ा इतंजार हमसे ज्यादा कराएगा।व्याकुलता में अपनी हमको व्याकुल कर जायेगा।पर ये सच है की हमको आज ढँग से मिलाएगा।आज घर पर हमारे भी चाँद जायेगा।
सरद होगी रात पर हमे बहुत लुभायेगा।साथ साथ छत पर हमे सुलाएगा।बीते लम्हों का शायद ही कोई पल याद आएगा।आज घर पर हमारे भी चाँद आएगा।
तुम्हारे दांतों और तुम्हारी आँखों को चमकाएगा।देख खिलखिलाहट हमारी आज मुस्कराएगा।दो जिस्म एक जान की पहचान कराएगा।आज घर पर हमारे भी चाँद आएगा।
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बहुत सुंदर…..पर शीतलता पहले पद में तीसरी पंक्ति के शुरू में होनी चाहिए ….
bahut bahut dhanyaad margdarshan ke liye
बहुत सूंदर और बिलकुल सम सामयिक कविता है तुम्हारी प्रेम। बहुत अच्छा लिख रहे हो।
ji bahut bahut dhanybaad apka…..aapka ashirbaad bna rahe bas….
Wah sir kya baat hai……..
bahut bahut dhanybaad sir ji apka