बात दिल की कह न पाया,दूर तुम से रह न पाया,कश्मकश सी दिल में मेरे,चाह कर भी कह न पाया,देख तुझ को जी रहा मैं,तेरे दिल में रह न पाया,झील सी है ऑंखें तेरी,पर कभी मैं बह न पाया,देख तुझ को आहें भर लू,लफ्ज़ ढाई कह न पाया,तेरे अहसास लिए मन में,सोचता क्यों कह न पायानोट:- आप सभी गुणी जनो से अनुरोध है की मैंने यह ग़ज़ल २१२२ २१२२ बह्र पर लिखी है आप सभी से निवेदन है की मेरा मार्गदर्शन करे अपने सुझाव दे कर………..
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल मनी जी !
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी इस सराहना के लिए …….
बहुत बढ़िया मनी जी…..अंतिम पद में कुछ गड़बड़ लगती थोड़ी सी मुझे… हाँ कोशिश करो एक शेर अपने आप में पूरी कहानी कहता हो जो ग़ज़ल की खासियत है…वो आगे पीछे के शेर की उंगली न पकडे न पकड़ाता हो अगर एक ही थीम हो तो…नहीं तो वो नज़्म का रूप हो जाता…एक ही थीम हो और शेर एक दुसरे को पकड़ के चलते हों…..
बहुत बहुत धन्यवाद सी एम् शर्मा जी आपके इस सुझाव के लिए……..मैंने चेंज किया है आप एक बार अपनी पारखी नज़र मारिये………………….तहे दिल आभार आपका जी……………..
लफ्ज़ ढाई कह न पाया,
बहुत अच्छे…श्री मनी जी…
बहुत बहुत धन्यवाद मार्कण्ड दावे जी आपकी इस सराहना के लिए……………..
Beautiful write ……………
तहे दिल आभार शिशिर जी आपका इस ख़ूबसूरत प्रतिकिर्या के लिए
बहुत खूबसूरत मनी …..बाबु जी की सलाह पर अमल करे !!
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आपके इस स्नेह के लिए…….जी मैंने बदलाव किया है उसमे आप एक बार अपनी पारखी नज़र मारिये……………….
Bahut hi khoobsurat and badiya sir!!!??????
बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस बहुमूल्य सराहना के लिए…….