हुस्न को गुरुर किस बात का है, ये चाँद भी बस रात का है। *** *** ये पतझड़ तो मौसम, अश्क़ों की बरसात का है। *** *** वो बरसों से खामोश है, ये भी तरीका इंतकाम का है। *** *** हमें बदनाम करने वाले, तू भी शख़्स किस काम का है। *** *** ‘दवे’ उसे पूछना जरूर, मुद्दा क्या तेरी औकात का है। *** ***उसे नफ़रत है तो कहती क्यों नहीं, प्यार भी खेल जज़्बात का है। *** ***
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Very nice composition
very nice sir……
बहुत खूब…………
Very beautiful poem Vinod.
thanks a lot to all of you. thanks
अति सुन्दर …………।।
धन्यवाद जी,,,,,,,,,,,,,,,