कितना अच्छा हो आदमी -जात-पात धर्म-मजहब मन्दिर-मस्जिद आदि बंधनों से पूर्णत: मुक्त हो। कितनाअच्छा होआदमी नहीं हो – चोर-लुटेरा खूनी-डाकू तस्कर-हत्यारा नेता अभिनेता अमीर-गरीब अच्छा-बुरा। आदमी -आदमी ही हो तो कितना अच्छा हो केवल आदमी।डॉ. विवेक कुमारतेली पाड़ा मार्ग, दुमका-814 101(c) सर्वाधिकार सुरक्षित।
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bahut badiya sir…………………………….
हार्दिक आभार मनी जी।
मैं सहमत नही हूँ….
कुछ हो या न हो………….. हाँ अच्छा हो ………अगर आदमी उसकी आदमियत के साथ आदमी हो !! इस सत्यता के आधार पर बेहद उम्दा अभिव्यक्ति !!
हार्दिक आभार शिशिर जी। कविता का केन्द्रीय भाव बस यह है कि आदमी सिर्फ आदमी हो अपनी आदमियत से लबरेजlजैसा कि निवातियाँ जी ने कहा है।
हार्दिक आभार निवातियाँ जी। सुन्दर बेबाक प्रतिक्रिया के लिए।
लाजवाब……….
हार्दिक आभार babucmजी।