लोग कुछ भी कहें ,मगर मै यह मानती हूँ ,कि बेटा बेटी में बहुत फर्क होता है ,बेटी का जहाँ दिल बसता है ,बेटे का वहाँ दिमाग चलता है।बेटे के लिए जो होती प्रॉपर्टी ,बेटी का मायका होता है ,जहाँ बसी हैं मीठी यादें ,गुड्डे गुड़ियों की बारातें।जहाँ गुड़िया की डोली सजती थी ,जहाँ सावन में मेहँदी रचती थी ,जहाँ दुख सुख मिल कर बाटे उसने ,खिलौने कितने ही छाटें उसने।उसके लिए ही क्योंझगड़ा होता है ?हाँ बेटा बेटी में बहुत फर्क होता है ,बेटे के लिए जो होती प्रॉपर्टी ,बेटी का मायका होता है।चलो अब प्रॉपर्टी भी बाटी हमने ,दुख सुख को कैसे बाटोगे ?यादों को कैसे छाटोगे ?सपने भी तो बाँट दिए अब ,अपनों को कैसे बाटोगे ?बेटा बेटी में बहुत फर्क होता है ,बेटी का जहाँ दिल बसता है ,बेटे का वहाँ दिमाग चलता है,बेटे के लिए जो होती प्रॉपर्टी ,बेटी का मायका होता है।
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ये बड़े गूढ़ सामाजिक प्रश्न है.उत्तर के लिए बड़ी बहस की आवश्यकता है
अपने अपने अनुभव पर ही आधारित होती हैं हमारी कविता और कभी कभी अपने आस पास घट चुकी घटनाओ पर भी। बहुत बहुत धन्यवाद
शिशिर जी आपकी सूंदर प्र तिक्रिया के लिए।
अनुत्तरित प्रश्न हैं जवाब मुश्किल है।
समय के साथ बेटा beti के रोल में बहुत फर्क आता जा रहा है , तो हम लोगों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी , क्योकि यूँ ही तो नही साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद आपका विवेक जी।
समय के साथ बेटा के रोल में बहुत फर्क आता जा रहा है , तो हम लोगों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी , क्योकि यूँ ही तो नही साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद आपका विवेक जी।
bahut hi gambhir vishay hai aapki rachna ka ……….sabhi ko iss par sochne ki jaroorat……bahut hi uttam……………
Yes I am in that age as well as stage of life ,when I want to discuss such topics , but every one has his or her according to their experience. Many many thanks Mani Ji.
फर्क बेटे बेटी में नही मानसिकता के साथ-साथ चली आ रही रूढिवादी परम्पराओ के निर्वहन में है, पुरुष प्रधान समाज के नजरिये में है, विज्ञान के क्षेत्र में अपार विकास के बावजूद व्यक्तित्व दृष्टिकोण आज भी वही है !!
बहुत बहुत धन्यवाद डी.के जी। क्या आपको नहीं लगता है कि हम लोगो को अपनी पुरानी रूढ़िवादी मानसिकता छोड़नी चाहिए क्योकि
आज के समय कि यही माँग है , जब किन्ही घरों में सिर्फ बेटियां ही होतीं हैं या बेटे अगर दूर होतें हैं तो बेटियां अपने माता पिता के
प्रति कर्तव्यपालन में खरी उतर रहीं हैं।
बहुत खूबसूरत……….बेटा बेटी का फर्क तो नहीं जा सकता कम ज़रूर हो सकता और वो भी टाइम के साथ…..यह ख़त्म तब हो सकता जब हम अपने माँ बाप की ही नहीं दूसरों के माँ बाप को भी उतना ही आदर दें …अगर हर किसी बजुर्ग को दें तो ये मानसिकता अपने आप समाप्त हो जायेगी…..