सब कुछ है धोखा कुछ कहीं नही हैहै हर कोई खोया ये मुझको यकीं हैना है आसमां ना ही कोई ज़मीं हैदिखता है झूठ है हक़ीकत नही है||
उपर है गगन पर क्यो उसकी छावं नही है?है सबको यहाँ दर्द मगर क्यो घाव नही है?मै भी सो रहा हूँ, तू भी सो रहा हैये दिवा स्वपन ही और कुछ भी नही है||मैने बनाया ईश्वर, तूने भी खुदा बनायादोनो का नाम लेकर खुद को है मिटायाक्या उतनी दूर है, उनको दिखता नही हैये कहीं और होगे ज़मीन पर नही है||एक बूँद आँखो से, दूसरी आसमां सेहसाते रुलाते दोनो आकर गिरी हैदोनो की मंज़िल, बस ये ज़मीं हैपानी है पानी और कुछ भी नही है ||
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Nice expression about life
thanks a lot Vivek ji ,
Beautiful thoughts ……….
Many thanks Shishir ji …
खूबसूरत रचना ……………..!!
निवातियाँ जी आपका बहुत बहुत आभार…..
बहुत खूबसूरत……..
Aabhar babu ji …..
बहुत सुंदर रचना…….. शिवदत्त जी ।
काजल जी बहुत बहुत धन्यवाद….