मेरे पति जब तक पति थे तो अच्छे थे ,मगर ऊपरवाले ने कुछ ऐसी साजिश रची ,कि मेरे पति को मेरा परमेश्वर ही बना डाला।ऐसी गड़बड़ ऊपरवाला अक्सर ही मेरे साथ किया करता है ,मै उस पीढ़ी और उस सोच की तो बिलकुल नहीं हूँ ,जो किअपने पति को ही अपना परमेश्वर माना करतीं थीं।मेरी जिंदगी पर मेरे उनका पहरा तो मेरे माता पिता ने ,पूरे विधि विधान से पहले ही दे दिया था ,मगरअब मेरी ,साँसों पर भी मेरे पति का पहरा ऊपरवाले ने लगा दिया है।मेरे पति जब तक मात्र पति थे अच्छे थे ,अब जब से परमेश्वर बने हैं और भी सहृदय हो गयें हैं ,हालाँकि इसमें उम्र और हालात दोनों का भी प्रभाव है।मगर अब डर है तो सिर्फ इस बात का ही ,कि ऊपरवाला उन्हें मेरा परमेश्वर बनाते बनाते ,कहीँ पत्थर का ही तो नहीं बना देगा।
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Good expression of thoughts Manjusha ji. But my views are contrary. The day you start treating your spouse as “Parmeshwar” nothing can trouble the relationship and understanding.
Thanks Shishir ji for your commemts. Yes your view may be different. Though I have never considered my
husband my parmeshwar, we are close freind and have very good understanding. Cicumstances of my life have
forced my pati to take care of me.In doing that he sometimes is overprotective of me,which irritates me.
गूढ़ चिंतन प्रस्तुत किया आपने…….वैसे पति को परमेश्वर बनाने में उस सृष्टि रचियता का कोई हाथ नही ये सब तो समाज और संस्कृति की उपज है, कितना सही या कितना गलत ये एक अलग विषय है !!
मेरी कविता मेरे निजी अनुभवो की देन है। मेरी जिंदगी में जो भी उल्टा सीधा घटता है ,उस के लिए मैं ईश्वर को ही जिम्मेदार ठहराती हूँ ,अपनी किस्मत कोनहीं। हमारे और ऊपरवाले के बीच इसी तरह दोस्ती और नाराजगी का रिश्ता चलता रहता है। मेरे हिसाब से भगवान् बनना आसान होता है ,एक अच्छा इंसान बनना ज्यादा मुश्किल है आज के जमाने में।
अनुभव अपने हैं हर किसी के …..आप की बात सही है परमेश्वर से नाराजगी की भी……पर आप अपनी नाराजगी कम परमेश्वर पे इलज़ाम की बातबकर रहीं हैं ऐसा लगता है….जबकि परमेश्वर तो हमारे कर्मों की बैलेंस शीट को कैसे संभालना है वो कार्य करता है…..ज़रूरी कदापि नहीं की परमेश्वर की पूजा की जाए….ज़रूरी ये की हम अपने कर्मो को कैसे करते हैं…..वो आज के हों या कल के या पिछले जन्म के….मेरा मत श्री गीता के सिद्धांत पर ही नहीं है बल्कि खुद का कुछ देखा हुआ है उस लिहाज से कह रहा …. हाँ जब हमारे मन का नहीं होता हम दोष भगवान् को देते जब ही जाता मन का अपने को क्रेडिट देते….अक्सर सब के विचार ऐसे ही हैं….आप जैसे…..आपके लिखने का अदाज़ कमाल का है..
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी। माफ़ करिएगा अगर मैंने किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुचाई हो तो। मेरी उपरवाले से कोई लड़ाई नहीं मगर बहुत
ज्यादा दोस्ती है इसीलिए तो रूठना मनाना चलता रहता है। और बाकी रही कर्मो की बात तो कई धर्मो में पिछले जन्म के कर्मो की बात भी लोग कहतें हैं।
मै स्वयं भी गीता के उपदेश को मन वचन और कर्म से अच्छा मानतीं हूँ।
बड़ी ही गहरी बात सोची आपने मैम…….बहुत लाजवाब ।
बहुत बहुत धन्यवाद काजल तुम्हारी इतनी अच्छी प्रतिक्रिया के लिए।