*अब सरदी की हवा चली है* …आनन्द विश्वास अब सरदी की हवा चली है,गरमी अपने गाँव चली है। कहीं रजाई या फिर कम्बल,और कहीं है टोपा सम्बल।स्वेटर कोट सभी हैं लादे,लड़ें ठंड से लिए इरादे। सरदी आई, सरदी आई,होती चर्चा गली-गली है। कम्बल का कद बौना लगता,हीटर एक खिलौना लगता।कोहरे ने कोहराम मचाया,पारा गिरकर नीचे आया। शिमले से तो तोबा-तोबा,अब दिल्ली की शाम भली है। सूरज की भी हालत खस्ता,गया बाँधकर बोरी-बस्ता।पता नहीं, कब तक आएगा,सबकी ठंड मिटा पाएगा। सूरज आए ठंड भगाए,सबको लगती धूप भली है। गरमी हो तो, सरदी भाती,सरदी हो तो, गरमी भाती।और कभी पागल मनवा को,मस्त हवा बरसाती भाती। चाबी है ऊपर वाले पर,अपनी मरजी कहाँ चली है।
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आनंद आ गया मौसम के मिज़ाज का….आनंदजी……
धन्यवाद…..आनन्द विश्वास
nice poems and nice feeling
Beautiful like ever before. You are unique in child poetry.
Lovely poem with entertaining child poetry.
बहुत ही सुंदर रचना……………….
आप सबका स्नेह ही तो मेरी शक्ति है, इसे बनाऐ रखिए….. आनन्द विश्वास