जब से मैंने तुम्हें निहारातुझमें मुझमें रहा ना अंतर तुझे प्रतीक्षा रहती मेरी मैं उलटी साँसें गिनता हूँ बाट जोहता रहता है तू मैं गिरता चलता रहता हूँ पद रखने की आहट पाकर सपनों की दुनिया के अंदर मैं तेरे अंदर जग जाता तू जग जाता मेरे अंदर जब से मैंने तुम्हें निहारातुझमें मुझमें रहा ना अंतर तुम हो कल्पित साथी मन के मेरे एकाकी जीवन के मैं भी बंदी बनकर तेरा जीता हूँ हर पल जीवन के करता है तू बस मुझसे ही जन्म-मरण के प्रश्न चिरंतर मैं आँसू के कण गिन गिनकर सोचा करता मैं क्या दूँ उत्तर जब से मैंने तुम्हें निहारातुझमें मुझमें रहा ना अंतर मुखरित है हर सिन्धु लहर में युग युग की है तेरी वाणी मैं बोलूँ या लिखना चाहूँ बनता वह नयनों का पानी छिपना है तो छिप जा मुझमें मेरे तन मन उर के अंदर तू ही तो कहता था मुझसे छिप न सकेंगे उर के क्रंदन जब से मैंने तुम्हें निहारातुझमें मुझमें रहा ना अंतर रंगबिरंगी रत्न जड़ित-सा है श्रंगार अनोखा तेरा मेरे दुख सब रत्न बने है आँसू है मोती सा मेरा तू मूरत पत्थर की बनकर शोभित करता अपना मंदिर मेरी काया घेर रखे हैं मेरे पथ के सारे पत्थर जब से मैंने तुम्हें निहारातुझमें मुझमें रहा ना अंतर सकल विश्व है तेरा अनुपम सुन्दरता सब तुझसे ही है पर विष जो तेरे कंठ धरा मधुरस-सा वह मुझमें भी है तू बैठा निश्चिंत अकेला सबके बाहर, सबके अंदर मैं बैठा सुनसान डगर पर सोचूँ क्या है मेरे अंदर जब से मैंने तुम्हें निहारातुझमें मुझमें रहा ना अंतर …. भूपेन्द्र कुमार दवे 00000
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हृदय छूती सुन्दर दार्शनिक रचना।
Marvellous write…………..
Wah sir…….bahut badiya………
दवे जी ……..आपकी आज तक मैं जितनी रचनाएं पढ़ी है सबसे अनुपम….अतुलनीय….है यह…..मैं 3 बार पढ़ चुकने के बाद आपको प्रतिकिर्या दे रहा हूँ…..मन करता बार बार पढूं…. इतने सुंदर सरल शब्दों से आपने जो मन के एकाकीपन से बात की और उसमें आत्मसात होने को बात की फिर जैसे शिव सब में है और हम सब शिव में ऐसे भाव एकाकार के हो जाएं अपने आप में तो ऐसी ही रचनाओं का जन्म होता है……नतमस्तक हूँ आपकी कलम राचनंके आगे…..सच में सम्मोहन है यह रचना…….
बहुत ही बढ़िया सर जी…
अनेक धन्यवाद
आप सभी ने मेरी रचना को पसंद किया और अपने मन से निकले अद्भुद शब्दों में कविता की सराहना की। मैं आप सबका आभार व्यक्त करने के लिये शब्द नहीं पा रहा हूं। गहराई लिये सदा सा धन्यवाद।
बहुत बेहतरीन आदरणीय दवे जी
बेहतरीन रचना……….
अत्यंत सुंदर रचना………… भूपेंद्र जी ।
Bahut hi khoobsurat rachna??