हे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलदेखूँ तेरा प्रकाश किधर है ?हे अंध काल ! रोष फन खोलबता तेरा आक्रोश किधर है ?अपने ही आँसू के छींटेअपने दर्पण पर हैं बिखरेअहंकार ने पहन रखे हैंव्यथा-वेदना के से चिथड़ेअब जीवन में मिथ्या मत घोलहे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलआने वाले कल की बाँहेंकल से मुझसे लिपट रहीं हैंकाम, क्रोध, मद, माया मुझकोआलिंगन में सिमट रहीं हैंबोल, राम नाम सत्य का बोलहे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलचंचल मन ले काया मेरीअहंकार में भटक रही हैप्राणों की प्रखर प्रभा को भीअंधकार में बदल रही है।अब न लगे यह जीवन अनमोलहे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलनिद्रामय नयनों में मेरेमैं ही तो शायद सोया हूँसपनों का कोलाहल साराक्यूँ खमोशी में ढ़ोता हूँदे दे अब चिरनिद्रा अनमोलहे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलसाँसों के खोटे सिक्के लेअब कितना मैं अभिमान करूँशक्ति, भक्ति या बुद्धि, मुक्ति काकब तक मैं अपमान करूँअब क्यूँ ऊच्चारूँ पापी बोलहे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलमेरे जीवन में तेरे हीटूटे पंखों का साया हैमेरे तन मन में भी तेरेत्यक्त तिनकों की माया हैअब क्या किलकारी ? क्या कल्लोल ?हे प्रभू ! अब मृत्यु द्वार खोलदेखूँ तेरा प्रकाश किधर है ?हे अंध काल ! रोष फन खोलबता तेरा आक्रोश किधर है ?….भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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तड़प की…..वैराग्य की संसार से…..लफ़्ज़ों से बेहतरीन अदाकारी……????
ह्रदय की वेदना वैराग्य रूप लिये बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत की है। शब्द संकलन भी रचना को सार्थक बनाने में सफल रहा । अति सुंदर ।।
अद्भुत रचना भूपेंद्र जी