यादेंयाद जो मुझको वो थीभूली बिसरी कहानियॉबूँद सी वो यूँ गिरीमिट गई निशानीयॉबुलबुले उठे नहींजल मे वो यूँ मिल गईकोहरे में खोई हुई सीयाद की वो दास्तानघाव वो भरा नहींबन गई नासूर अबयॉदें थी जो अब तलकमिटाने को सोचता हूँलेकिन अब मिटती नहींकुछ घाव तो भर जाते हैंयादों के जख्म भरते नहींज़िंदगी भर साथ रहतीसंग चलती जाती हैलोग मिट जाते हैं लेकिनयादें मिट पाती नहीं ।
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आप की लेय नहीं बन रही जो मुझे लगा दुबारा पढ़िए इसको…. आप पहले घाव भरा नहीं नासूर बन गयी यादों को लिख रहे है फिर घाव भर जाते यादें भर्ती की जगह मरती मुझे उपयुक्त लगता पर आप जो कहना चाहते उस हिसाब से एक बार और अवलोकन कीजे…..
शर्मा जी क्या अब सही हुआ
कृपया ज़रूर अपना सुझाव दीजिएगा
धन्यवाद
सुनीलजी…मैंने कोशिश की है आपके विचारों को समझ कर उसको लिखने की….आप इसको देखिये की आप जो कहना चाहते उससे मेल खाती हैं…कृपया आप इसको ही अंतिम रूप मत समझें आप जैसे चाहे लिख सकते हैं…अपना अपना विचार है..और हाँ यह भी मत समझिये की मैं अपने को आप से ज्यादा समझता हूँ तो लिखा…बस अपने विचार लिखें है…आशा है मेरी बात को यथावत लेंगे…
याद जो मुझको वो थी
भूली बिसरी कहानियॉ
बूँद बूँद सी वो यूँ गिरी
के मिट गई निशानियां
बुलबुले उठे नहीं
जल मे वो यूँ मिल गई
कोहरे में खोई हुई सी
मेरी पहचान की निशानियां….
घाव वो भरा नहीं
नासूर सी वो बन गई
मिटाये से मिटी नहीं
मेरी यादों की परछाइयां
ज़ख़्म हों तो भर जाएँ वो
पर कैसे भरें वो घाव
रहते हैं हर पल जो साथ
यादों में बसी मेरे ज़िन्दगानियां