जीवन के हर राह पर काम आता “जी”,नाम के साथ लग मान दिलाता “जी”,एक लफ्ज़ में सहमति जताता “जी “,कभी ख़ुशी की हाँ बन आता “जी “, कभी ग़मी में हामी दर्शाता “जी”,कभी दफ्तरों में माखन लगता “जी”,कभी हर सवाल का जवाब होता “जी”,कभी दिल के ज्जबात दिखाता “जी”,कभी प्यार की परिभाषा समझता “जी”,खुद को छोटा रख कर बड़ा बनाता “जी”,क्या रखा है “मनी” तू ता करके जीने में,जी कहो जी सुनो जीने का सलीका सिखाता “जी”,मनिंदर सिंह “मनी”
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जी मनी जी बहुत सही पकडें हैं जी……हा हा हा……
ji c m sharma ji………….hahahahaha
जीने का सलीका सिखाता “जी”,
बिलकुल सत्यवचन श्री मनी जी…
thank you sir ji……………………
जी में दम है मनी जी
अति सुंदर
ji manoj ji… apka dhanwad ji……………………….
Nice thoughts through this valuable word.
thank you so much sir………………………
सच मे आपने इस बिचारे एक अकेले शब्द जी को पकड़ कर इतनी सूंदर कविता बना दी ,बहुत खूब मनी जी। बहुत ही अच्छे जा रहे है आप।
sukriya apka majusha ji……………………………..
मनी जी बेहद खूबसूरत रचना है आप की ‘जी’ !
bahut bahut dhanywad meena ji…………………..