क्वार-मास के कृष्ण-पक्ष में, श्राद्ध-पक्ष जब आता है।पितरों को तर्पण करके नर, परम तोष हिय पाता है।।शुचि-सावन में सभी पितर जब, मृत्यु लोक में आते हैं।।पुत्र-पौत्र से श्राद्ध ग्रहण कर, दुख हर दूर भगाते हैं।।आदित्य-रुद्र-वसु तीन यहां, श्राद्ध देव कहलाते हैं।संतुष्ट अगर वे हुए श्राद्ध से, पितर मुक्त हो जाते हैं।।श्रद्धा से यदि श्राद्ध करें हम, घर-दर शुचि हो जाते हैं।सत्कार-प्रेम के बदले हम, आशीष सुखों का पाते हैं।।माँ बाप धरा पर देव तुल्य, सदा स्नेह बरसाते हैं।एक बार जो गए जगत से, यादों में रह जाते हैं।।जीवन मात-पिता की महिमा, समझ नही जो पाता है।तव सेवा के पुण्य-कर्म से, वंचित वह रह जाता है।।जीते जी सम्मान नहीं तो, श्राद्ध एक घोटाला हैमात पिता के चरणों में ही, स्नेह-सुधा का प्याला है।वचन-कर्म और सहज-भाव से, पावन पर्व मनाना है।।विधि संयम से तर्पण करके, अपना फर्ज निभाना है।।(शिल्प- ताटंक छंद)!!!!!!सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’
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अपने पूर्वजों का सम्मान सबसे बड़ी पूजा अर्चना है ,सुरेन्द्र जी आपकी खूबसूरत रचना प्रेरक हैं ,हम आह्लादित हैं
बेहद प्रभावी पद्भति भाव संप्रेषण की……., बहुत सुन्दर रचना सुरेन्द्र जी!!
रचना पसंद करने के लिए आभारी हूँ आपका मीना जी
Bahut hi sundar aur uttam vichar…Sir!!!
Dhanyvaad dr swati mam
Marvellous write. Brings out the importance of this great service to the departed souls in very beautiful way.
धन्यवाद आदरणीय मधुकर जी रचना पसंद करने के लिए
बहुत ही बढ़िया, श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह जी… धन्यवाद…
मार्कण्ड दवे जी धन्यवाद
Bahut achchhey surendra sahab , aapne sradhya aur tarpan ki pauranik gatibidhiya bhi pesh kar di aur prampara ko barkarar rakhne ki salah bhi , bahut achchhey bas dikhawa nahi honi chahiya, sadbhaw se kiya prem amrit rash ke brabar hai , maa – baap ki sewa jeete jee honi chahiya, undhey dukh dene ka matlab santi bhang gona. thanks.
आदरणीय बिन्देस्वर प्रसाद जी धन्यवाद
Very nice sir………