मैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावोदिव्य पूर्णता अपने स्वर कीइन गीतों में भर जावोगाते गाते राग थके जबमेघों की गर्जन ले आवोबिखरे सुर जब मन कानन मेंउन्हें संजोने तुम गावोअधखुली पँखुरियाँ गीतों कीछूकर तुम पूर्ण बनावोमैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावोतेरे विशाल शब्दकोश मेंकोरा कागज अर्थ न बूझेयह गूंगापन मूक अधर काक्यूं कोलाहल में छिप झूमेरिक्त पंक्ति में लय भरकर तुमकुछ राग अनूप सुनावोमैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावोमूक शब्द भी अर्थ भरे हैंपर मैं कैसे उनको समझूंमौन अगर तुम रहना चाहोतो मैं तुमको कैसे समझूंतुमने ही तो शब्द रचे हैंतुम ही अब अर्थ बतावोमैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावोचिंता की रेखा में अंकितस्वर लहरी भी कँपती जावेप्रथम उड़ान के पहले हीपंख सहित मन भी थक जावेखत्म न होवे गीत खगों काकुछ ऐसा गीत सुनावोमैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावोतुम हो अंतिम स्वर जीवन केअज्ञात मौन के बोल तुम्हींसारा कोलाहल भी तुम होअनंत मौन के बोल तुम्हींगीतों की सोयी पलकों मेंस्वप्न सुनहरे भर जावोमैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावोमेरा जीवन पथ है सूनाकदमों की आहट भी चुप हैमेरे गीतों की खामोशीइन सन्नाटों में गुमसुम हैतुम चाहो तो इन गीतों कोतुतलाना ही सिखलावोमैं चाहूं मेरे गीतों कोतुम अपने सुर में गावो…. भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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very nice sir…………………
बहुत ही सुंदर भावों में लिखा है आपने. अति सुंदर रचना है…………..