इतनी ग्लानि…इतनी कुंठा…इतनी शर्म…अपने आप पे…कभी महसूस नहीं की थी….शायद इस लिए भी कि ज़िन्दगी में कभी…अपने को जानने की इच्छा ही नहीं थी…दूसरों की बुराईयां ढूंढते रहा….दूसरों को ही बदनाम करता रहा…या डरता रहा अपनी बुराईओं से…बाहर आयी तो क्या होगा….कुछ भी था पर अपने को नहीं जानता था…मैं…बस….आज अपने को मिलना चाहता हूँ….तो अपने को ही नहीं पहचान पा रहा….इतना घिणौना सा चेहरा है मेरा….ऐसे लग रहा जैसे किसी अजनबी से मिल रहा हूँ….ऐसा अजनबी जो मुझपे हँसता जा रहा है…और मैं अवाक उसको देख रहा हूँ…कर भी क्या सकता हूँ….विचलित हूँ अपनी ही दशा पे…रोना चाहता हूँ…चिल्लाना चाहता हूँ….किसी पे नहीं सिर्फ अपने पे….पर वो भी नहीं कर पा रहा हूँ…लोग कहेंगे कि कितना कमज़ोर है…मर्द हो के रोता है….रोना भी है तो दूसरे की मर्जी से…कितना असहाय सा हूँ मैं…दूसरों के दिए नामों से जाना जा रहा हूँ….दूसरों की दी प्रशंसा की ख़ुशी में नाच रहा हूँ…गौर्वानित हो रहा हूँ….अपना कुछ भी नहीं…नाम…शोहरत…पहचान…सब किराए का….मेरा अपना है क्या….कौन हूँ मैं…घिन्न आती है मुझे अपने आप से…जब ये सवाल अपने से करता हूँ…मजबूरी है…करना पड़ रहा है…कितना बेबस हूँ…मैं….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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sir aap gyan ke sagar ho……….bahut badiya likha aapne………………………….
आआभार आपका मनिजी……
APNI DASHA AUR DISHA KI JO BARNAN AAP NE KI HAI , MAYAJAL AUR USHMEY ULJHEY BAKATON KA JITA JAGATA SABOOT AAP NE PESH KIYA HAI.
बहुत बहुत आआभार आपका…….
बेहतरीन भावों के सजी रचना………………….अति सुंदर………………….
जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ.
तहदिल आभार आपका विजयजी……
Babbu ji very deep introspective thoughts. Great write like all previous series of “baar”
आपकी सराहना का दिल से आभार…….
सर एक एक शब्द पाठक के दिल में उतरी बहुत ही बढ़िया रचना
आपके पास शब्द भंडार है। आप यूँही लिखते रहे
सर मैंने आपके शब्दकोष से कुछ शब्द उधार मांगे रो आप मुझे भण्डार बना दिया हा हा हा….बहुत बहुत आभार आपकी प्रशंसा का….
शर्मा जी……….. काबिले तारीफ ………. हार कर भी जीत
रहे हैं आप ….. लाजवाब रचना ।
आप जैसे गुणीजनों का साथ हो तो हार कैसे सकते….है ना……दिल से बहुत बहुत आभार…..
वाह! शानदार । सादर नमन !
बहुत बहुत आभार आपका……
इस श्रृंखला पर साहित्यक रूप में आपकी गहन विचारशीलता का धोतक है …आपकी यह सफलता है की आप जिस विषय को चुनते है उसकी गहराई में जाकर उसको परिपक्क्वता पर ध्यान देते है, Quantity से ज्यादा Quality पर जोर देना आपकी विशेषता है जो बरबस ही आपके साहित्य प्रेम की और ह्रदय की आकर्षित करती है ………कोटि कोटि बढ़िया आपको ….आशा है आपकी ये किताब जल्द ही पूरी होकर प्रकाशित हो !!
सर इतना भी नहीं की किताब पब्लिश हो जाए….आपके स्नेह का सम्मान का शब्दों में मैं जवाब देने लायक नहीं हूँ…..मेरी इतनी तम्मन्ना है कि आप जिसे गुणीजन इतनी ऊंचाइयों को छू लें जो हर किसी के बस में ना हो और आप हमारा नहीं सब का मार्गदर्शन निरंतर करते रहे और आपका नाम उन साहित्यकारों में शुमार हो जिन्होंने साहित्य से बुलंदियों को छुआ और जिनसे भारत का नाम रोशन है विश्व में……तथास्तु……
सुंदरभाव………………….बहुत खूब ………………….
आप का ह्रदय से बहुत बहुत आभार….सच में आपकी प्रतिकिर्या आज पा कर मन प्रसन्न हुआ…..
शर्मा जी अत्यन्त सुन्दर रचना .रचना की गुणवत्ता की प्रंशसा में मुझ से पूर्व की प्रतिक्रियाओं से पूर्ण सहमति .बेहद सुन्दर “हार”,
श्रृंखला ।
बहुत बहुत आभार आपका दिल से मीनाजी……,आप वक़्त निकाल कर अमूल्य विचार देती हैं ….बहुत बहुत शुक्रिया……..
बहुत सुंदर……..
तहदिल आभार आपका…अल्काजी….
Very Nice Shri sharma sahab
बहुत बहुत आभार दिल से आपका…..वक़्त मिले जब हार की और कड़िओं को भी नज़र करियेगा…..
लाजवाब . . . . . . . . . . . . . . . . . . . शर्मा जी !!
अभिनन्दन…..ईद का चाँद जी…हा हा….आशा है सकुशल होंगे आप….बहुत महीनों बाद दर्शन हुए…. दिल से स्वागत आपका….बहुत बहुत आभार आपका…..