ईद के मौके पर ढाका जी सड़कों पर खून की नदियाँ देखने के बाद, सभी जीव प्रेमियों की मौन साधना से आहत मन से लिखी हुई इस्लाम के प्रति सबकी आँखें खोलने की कोशिश करती मेरी ताजा रचना —–रचनाकार – कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग” वसुधा करती है चीत्कार,हिलकियाँ भर रहा अम्बर हैक्यों मौन धम्ब के अनुयायीक्यों अंधा मूक दिगम्बर हैअब कहाँ गये निर्मूलन श्रद्धा-अंधसमिति के सौदागरक्यों ना कहते हैं वो दलालये कुर्बानी आडम्बर हैसुन ले जाली टोपी वालेमैं उसे दरिन्दा बोलूंगायदि बिनबोलो के लोहू का भीप्यासा वो पैगम्बर हैनेकी के दूतों का तो ऐसा कर्म नहीँ हो सकता हैजो निर्दोषों का लहू पिये वो धर्म नहीँ हो सकता है रक्तिम आधार जीवनी केरक्तिम जीवन के सार बनेबातों में गुलशन की खुशबूकर्मों के आशय ख़ार बनेजो हूरो के पुतले बनकरदुनिया को धोके में रखतेउनके दुष्कृत्यों के फल तोपूरी दुनियाँ पर भार बनेस्वर इनके भी थे मधुमय जबटुकडों पर पलकर पेट भरेअब फौज बड़ी है कुकुरो की तोसुलगी हुई लुबार बनेचाहो कितना भी पर इनका दिल नर्म नहीँ हो सकता हैजो निर्दोषों का लहू पिये ———– चलती है आरी गर्दन परसड़कों पर लहू उतरता हैकितने जीवों के जीवन कोदुष्टों का जीवन चरता हैढाका की सड़के तो बस हैं इकदृश्यम इन्हीं दरिंदों काना जाने कितने शहरों काचित्रण वीभत्स उभरता हैबोटी को चखने के कैसे येशौक सियारों के घर मेंसबकी आँखे हैं चमकीलीकब किनसे सागर झरता हैपेटा को मिली पोटली वो भी गर्म नहीँ हो सकता हैजो निर्दोषों का लहू पिये —————- माँ,बहनों में,बेटी में भीकोई भी नहीँ फर्क पायाफतवों के कारिंदों का देखोनित-नित नया तर्क आयातुम जिसे शान्ति का मज़हब कहकरकरते रोज़ दलाली होमैं कहता हूँ वो गोबर हैजो चाँदी चढ़ा अर्क पायायदि बुरी लगे तुमको मेरेशब्दों की जलती “आग” प्रखरदेखो साक्षी इतिहास अमरइस्लामी यहाँ नर्क लायाइससे बढ़कर जग में कोई बेशर्म नहीँ हो सकता हैजो निर्दोषों का खून पिये ———- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”9675425080
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बहुत सही लिखा है …….कोई भी धर्म मानने वाला जो इंसान है सच में किसी भी निर्जीव की हत्या नहीं कर सकता…..घृणित कार्य है यह……
धर्म का आवरण पहनकर जीव हत्या करना उस पृकृति का उपहास है जिसने धरती पर जीवन का सृजन किया ।
देवेन्द्र जी सही कहा आपने, पर यह बुराई किसी एक धरम में नहीं है। असम में माँ कामख्या के दरबार में बड़े बड़े भैसे काटे जाते है। 2014 में मै गया था,भैसो को कटते देख बिना दर्शन किये लौट गया। नेपाल में मरीमाई के यहाँ लगभग 5 लाख पशु बलि दी जाती है। इसलिए केवल एक धर्म के बारे में यह बोलना उचित नहीं, कमोवेश हर मजहब धर्म में यह गंदगी व्याप्त है। यह एक बुराई है जिसमे सभी धर्म के लोग लिप्त है शिवाय जैन और बौद्ध धर्म के क्योकि इन दो धर्मो में बलि प्रथा नहीं है
.बहुत खूब ………………….
मुझे नहीं लगता कि बुराई किसी धर्म में है ।
सभी धर्म अपने आप में विशेष महत्व रखता है
बुराई है लोगों में…………. लोगों की नियत में ।
गलत बात को ज्यादा बढावा देने वाले लोगों में ।
धर्म में तो अच्छी बातें ही सिखायी जाती है ….
लोगों का नजरिया ही सब चीजों को बढ़ावा देता या
कम कर देता है ।
लोगों को गलत नियमों को बढ़ावा न दे कर कम या खत्म कर देना चाहिए ।