**सारा भारत गूंज उठा है सांपों की फुफकारों से**
लोकतंत्र जब भरा हुआ है खुद अपने हत्यारों से,
तब कैसी उम्मीद करें हम इन कोढ़ी सरकारों से l
लोकतंत्र का मन्दिर कहना मन्दिर का अपमान ही है,
सौ-सौ लाशें चीख रही हैं संसद की दीवारों से l
आस्तीन में जाने कितने सांप छुपाये थे हमने,
कि सारा भारत गूंज उठा है सांपों की फुफकारों से l
जहां प्यार की बात चले तुम प्यार चले तुम प्यार लुटाओ अच्छा है,
जहां तलवारों की बात चले वहां बात करो तलवारों से l
दुश्मन से गर बात करो तो बात समझ में आती है,
पर बात समझ के बाहर है जब बात चले गद्दारों से l
फ़िर बटवारे पनप उठे हैं गांधीवादी गीतों में
और भारत मुर्दाबाद सुना है आज़ादी के नारों से l
मेरी थाली में खाते हैं और पैरवी दुश्मन की,
देशद्रोह की बू आती है बिके हुए अखबारों से l
लोकतंत्र की हत्या से कुछ पर्वत मन में उपजे हैं,
अब मैं उनको काट रहा हूं अल्फाज़ों के वारों से l
चीख रहा हूं मैं क्योंकि मेरी नैतिकता घायल है,
ये गांधीवादी ढोंग नहीं हो पाता है खुद्दारों से l
माफ़ करो मैं शबनम वाली वाणी बोल ना पाऊंगा,
शब्द व्यंजना दहक रही है भावों के अंगारों से l
जब लाशों के उपर बैठी बन्दूकें आवाज करें,
तब समाधान मुमकिन है केवल आग भरे हथियारों से ll
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-Er Anand Sagar Pandey
बहुत की जोशीला, और वीर रस से भरी ओजपूर्ण रचना……………..
आकाश भर बधाई
पहली बात ये की बेहतरीन रचना है. लेकिन जब हम एक अंगुली दूसरे की तरफ उठाते हैं तो तीन अंगुलियां हमारी अपनी ओर ही इशारा करती हैं और हमने हमेशा एक अंगुली के इशारे को ही दोषित कर दिया और तीन अंगुली के इशारे को स्वीकार ही नहीं किया. क्या ये संभव है की बिना हमारे आदमियों के गुप्त सहयोग के इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया जा सकता है. सबकी जड़ भ्रष्टाचार है और भरताचार्य देश को सदा कमजोर ही करेगा मजबूत नहीं.
typing mistake.
और भ्रष्टाचार देश को सदा कमजोर ही करेगा मजबूत नहीं.
ओज से परिपूर्ण भावनाओ का खूबसूरत चित्रण ..सचेतन मन का होना अतिआवश्यक है ……जिसके लिए जागरूकता को बढ़ावा देना जरूरी है …रचना इस कार्य को बखूबी अंजाम देती है !!…………….वर्तमान परिस्थितयो के अनुरूप आहत मन से वेदना और ओज का प्रवाहित होना स्वाभाविक है ………मगर जब तक हम और हमारा समाज अंधे भक्त की तरह आचरण करते रहेंगे …ऐसी समस्याओ से जूझते रहना होगा !!
खूबसूरत …………
Behtreen…………..
अनमोल……..अनुपम…….कारागिरी…….एक कुशल जोहरी की तरह से तराशी…..शिल्पकार की तरह से जान डाली हुई…….बेहतरीन…….. हां ऊपर जो सुधिजन हैं उनकी बात से भी मैं सहमत हूँ…….दोष तो हम सब का है…..बढ़ावा देने और पनपने में सहायता करने का…….. भगवान् आपकी कलम को बहुत ऊंचाईयां दिखाये…..जय हो……
veer rus se paripurn rachna. …..
आनंद जी बेहद ख़ूबसूरत रचना है आपकी ,देश भक्ति की भावना को जो ठेस पहुँचायें उन्हें माफ़ नहीं किया जा सकता ,देश में भरे ग़द्दारों से सावधान रहने की आवश्यकता है हमें