ॐ तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः ।
जब प्रकृति में कुछ नहीं था, तो भी शब्द था, और जब प्रकृति में कुछ नहीं होगा, तो भी शब्द होगा । शब्द पर मेरी शब्दांजलि…..
जब मौन विस्तार सा आकाश में था गहरा,
जैसे शुन्य निर्वात में कुछ होना अभी बाकी था
तो, शब्द नाद से धरा का सृजन पल्लवन हुआ,
शब्द संस्कृति का विस्तार अभी बाकी था
शब्द वरदान सिर्फ मानव ने पाया और
मनुज श्रेष्ठताओं का संस्कार अभी बाकी था
तो, शब्द मात्र अक्षरों का योगिक न मानिए
शब्द ब्रह्म शक्ति अनुपम है यह जानिये
शब्द ही से चेतना, शब्द ही से भाव है
शब्द अभिव्यक्ति और शब्द ही संवाद है
शब्द प्रकृति में यूँ तो मिलता बेमोल पर
उपयोग से होती तय कीमत है जानिये
(Words can be like X-rays if you use them properly — they’ll go
through anything. You read and you’re pierced.”)
शब्द से सृजन, शब्द ही से विध्वंस है
शब्द से आराधना और शब्द ही प्रसंश है
शब्द कभी मरता नहीं, शब्द नश्वर है
शब्द रिश्तों का बंधन, शब्द ईश्वर है
तो मीठे बोल बोलिए शहद घोल घोलिये
बोलने से ज्यादा महसूस शब्द कीजिये
बोलने से ज्यादा महसूस शब्द कीजिये
बहुत सुंदर रचना है.
आपकी नज़रों की प्रतीक्षा में “शराब (गजल)” है. अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
धन्यवाद …आपने पढ़ा और सराहा
Beautiful……………………..!!
Behad sundar…………
बहुत सुंदर प्रदीप जी ,शब्द में बड़ी ताक़त है ।ज़िंदगी की शुरुआत भी शब्द से होती है और अंत भी