सर उठा के शान से जीने का गुर सीख लेना
परिंदों से उड़ने का हौसला
दरिया से मौजों की रवानी का शोर सीख लेना
कभी न डरना, गरजते सिंघो से भी
भरत की तरह उनके दाँतों को गिन पाने गुरुर सीख लेना
हिमाला से अडिग अपने व्यक्तित्व उजाले से
हिमगिर से भी हो ऊँचा, वो शिखर चूम लेना
पर कभी वक्त मिले अकेले में
खुद से बतियाने का
अंतर्मन में अपनी आँखों से आँखे मिला कर
खुद के गिरेबाँ में झांकना
जो खुद को हारा हुआ पाओ तो
फिर से उठना, संभलना और भी निखरना
खुद से हार कर मेरे दोस्त
“दुनिया को जीतने का गुर सिख लेना”
Beautiful thinking……………….!!
खूबसूरत भाव…………………………….
अछि सोच को सामने रखकर लिखी गयी उत्तम रचना
सुन्दर………?
बहुत खूब………………..
आप सभी के द्वारा उत्साह वर्धन हेतु साधुवाद आभार