तरही मुशायरा:
सफीने डूब जाते है किनारे रक्स करते हैं।
बह्र: 1222 1222 1222 1222
दुवाओं का असर जब हो सितारे रक्स करते हैं।
सजे महफिल बहारों की नजारे रक्स करते हैं।।
जहाँ सम्मान निज माँ बाप का दिल से नहीं होता।
वहाँ बरकत नहीं! सब गम के मारे रक्स करते हैं।।
लड़े हम जाति मजहब और भाई वाद में बटकर
वतन रोता मगर नेता हमारे रक्स करते हैं।।
अगर घनघोर तूफा में सहारा दें न मौजें भी
*सफीने डूब जाते है किनारे रक्स करते हैं*।।
गरीबो पर सियासत आम अब तो हो गई देखो
पड़ी है लाश लेकिन देख नारे रक्स करते हैं।।
हुई हावी रिवायत पर लिबासों की ये उरियानी
बदन अब खुद नुमाइश में तुम्हारे रक़्स करते हैं।।
नहीं चौपाल पर कोई कहानी लोग सुनते हैं
घरों में आज टी वी के सितारे रक़्स करते हैं।।
ये मैखाने की राहत भी अजब है ‘नाथ’ तू भी चल
गमों को भूल हाला के सहारे रक़्स करते हैं।।
रक्स= नाचना, हिलना
सियासत = राजनीति
बरकत = बचत, संचय
सफीने = नाव
रिवायत = परम्परा
लिबास= वस्त्र, पोशाक
उरियानी= नग्नता
मैखाने = वह जगह जहाँ सामूहिक रूप से मदिरा पान होता है
हाला= मदिरा
सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’
बहुत सुंदर कविता है सुरेंद्र जी ,यह पूरा विश्व ही ,प्रकृति का रक़्स ही तो है ,एक लय है ,जिसपर सम्पूर्ण ब्रह्मांड रक़्स कर रहा है फिर इंसान की तो औक़ात ही क्या है बहुत सुंदर
सही कहा आपने मैम, भावों को पहचानने के लिए और प्रतिक्रिया देने के लिए कोटि कोटि आभार
बहुत ही लाजवाब…..आप के शब्दकोष का जवाब नहीं है….ये रदीफ़ काफिया ग़ज़ल के लिए जो दिया है… एक बहुत ही पुराणी ग़ज़ल इसी काफिया रदीफ़ पे थी पढ़ी थी शायर तो याद नहीं….शायद वहां से लिया है…. आपकी कलम ने चुन चुन के शब्द सजाये हैं…. पता नहीं ठीक हूँ गलत हूँ मैं इस शेर को समझने में
“जहाँ सम्मान निज माँ बाप का दिल से नहीं होता।
वहाँ बरकत नहीं! सब गम के मारे रक्स करते हैं।।”
गम के मारे की जगह बेसहारे कैसा लगता आपको….आपकी बह्र से बाहर भी नहीं जाता ये…
मुझे भी अपने शब्दकोष में से कुछ कोष उधार दे दो तो हमारी भी कोई बात बने….हा हा हा…..
लाजवाब….मजा आ गया….
सर धन्यवाद इतनी प्रोत्साहन भरी प्रतिक्रिया के लिए
यह अफताब अकबराबादी के गजल के बोल
सफीने डूब जाते है किनारे रक्स करते है पर आधारित तरही मुशायरा है।
आपके सुझाव को सर माथे पर
पर बेसहारा नहीं क्र पाउँगा अन्यथा बह्र गडबड हो जाएगी
क्या बात। क्या बात। क्या बात। बहुत खूब जनाब।
सर धन्यवाद इतनी प्रोत्साहन भरी प्रतिक्रिया के लिए
यह अफताब अकबराबादी के गजल के बोल
सफीने डूब जाते है किनारे रक्स करते है पर आधारित तरही मुशायरा है।
Surendra, Good use of oxomorn.
सर धन्यवाद इतनी प्रोत्साहन भरी प्रतिक्रिया के लिए
शिल्प से सुसज्जित खूबसूरत ग़ज़ल सुरेन्द ……….इसी तरही मुशायरे पर पहले भी ग़ज़ल नजर हुई शायद आप ही की थी या अपने समूह से जुड़े किसी अन्य सदस्य की …मगर है बहुत खूबसूरत !!
धन्यवाद आदरणीय निवातिया सर……… मेरी ही थी सर
बहुत ही बेहतरीन ………… सुरेंद्र जी ।
आदरणीय काजल जी कोटि कोटि आभार
वाहहहहहह शानदार सृजन आदरणीय सादर नमन
आदरणीय अभिषेक जी बहुत बहुत धन्यवाद
Bahut sundar sir. ……..
sundar bhav. ….nice shavdawali. ..
धन्यवाद आनन्द जी…………
वाह सुरेंद्र जी, बहुत ही ख़ूबसूरत गजल लिखी है आपने।।।
हकीकत को बयां करती, दिल के कोने से सीधे पन्नों पर उतरी नयी-नवेली दुल्हन की तरह, सुबह की पहली किरण तरह लोगों पर असर छोड़ गयी ये नज्म।।
बहुत-बहुत मुबारक़बाद आपको,,,
और बहुत सारी मोहब्बतें???
आदरणीय मोबिन खान जी धनी
बेहतरीन रचना अपने सम्पूर्ण भाव के साथ, हर शेर सवा शेर
धन्यवाद………………………………
लाजबाब बेहतरीन, वअह वअह वअह वअह
धन्यवाद ……………………………………
हर शेर सवा शेर दिली मुबारकबाद
धन्यवाद………………………. आभार
Bahut hi khubsurat rachna….
धन्यवाद अनु जइ………………………
bahut achchhi mushayara aapne pesh kiya, wash kya baat hai.
आभार आपका बिंदु जी………….
alfazo ka ka samder hai aap ke ander…..bahut badiya sir………………….
धन्यवाद आदरणीय मनिन्द्र जी
Bhut hi lajawab……
धन्यवाद समीर जी……………
काफि़या और रदीफ़ को मिलाकर जीवन के सभी पहलुओं को छूती हुई एक स्तरीय तरही मुशायरा |इस रचना के लिए आपको हृदय से बधाई !
ह्रदय तल से आभार आदरणीय मनीष जी
Bahut khoob Surendra ji .Khas kar ki aapki Urdu ki aur aapki gazal ki main jitni bhi taareef karoon voh kam hai ,kyoki aap Assam mein rah kar itni shudh Urdu kaise paish kar sakte hain.