Homeहरिवंशराय बच्चनउमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फारसी से हिन्दी में अनुवाद-2 उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फारसी से हिन्दी में अनुवाद-2 अशोक कुमार शुक्ला हरिवंशराय बच्चन 09/02/2012 No Comments बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास, पिलाता जा, बढ़ती जा प्यास! सुनेगा तू ही यदि न पुकार मिलेगा कैसे पार? स्वप्न मादक प्याली में आज डुबादे लोक लाज, जग काज, हुआ जीवन से, सखे, निराश, बाँध, निज भुज मद पाश! Tweet Pin It Related Posts मुझे पुकार लो रात आधी खींच कर मेरी हथेली यह कौन आया About The Author अशोक कुमार शुक्ला ममता की रंगदारी से हारा हुआ एक पत्रकार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.