दे दे अपनी बाँहो को सरहाने में, की सुकून आ जाये ,
तू है मेरे साथ में हरदम बस , मुझे यकीन आ जाये,
ज़िन्दगी कम जो थी तेरी , तो साँस हम तुझे दे देते,
अब तो समां जा मेरी रूह में , ,,,,,,,
की चैनो सुकून मेरे भी नाम आ जाये ,
मिलेंगे तुझसे हम , खुद की उस जन्नत में ,
अब देर ना कर , बुला ले हमे भी ,
इस बैचैन दिल को अब करार आ जाये ,
दे दे अपनी बाँहो को सरहाने में, की सुकून आ जाये ,
तू है मेरे साथ में हरदम बस , मुझे यकीन आ जाये,
भाव आपके अच्छे है……लय में नहीं बैठ रहे….आप एक बार फिर से देखिये इसको…..
भाव पक्ष मजबूत पर शिल्प पर अभी काम करना है
Nice one…Thanks..
रूपाली जी काफी अच्छा लिखा है आपने। केवल एक जगह त्रुटि है “ज़िन्दगी काम जो थी” के जगह “ज़िन्दगी कम जो थी” कर दीजिये।
बहुत ही सुंदर भाव में लिखी गयी रचना है.
मेरी एक रचना आपकी नज़रों और बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में है “शराब (गजल)”. कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
खूबसूरत भाव सम्प्रेषण …………………….!!
Thanku …….I will try my best thanks for your opinion……….