आश्विन मास के कृष्ण-पक्ष में
आरम्भ महालय का होता है
पितरों को नमन करने का
अनुपम अवसर ये होता है.
जिनकी कृपा से तन-मन मिलता
कृतज्ञ ये सारा जीवन होता
उनको तर्पण-अर्पण करते
अर्पित करते वंदन-पूजा.
रहता नहीं अवकाश किसी को
चिंतन-विचार कर पाने को
एक बार जो गए हैं जग से
कभी लौटे नहीं घर आने को.
पार्वण-श्राद्ध का मतलब होता
भावनाओं का बने आधार
भावी-पीढ़ी में श्रद्धा निहित हो
विकसित हो करुणा दुलार.
शास्त्रों में ऐसा कहते हैं
इस दिन पितर जमीं पर आते
इच्छित प्रेम और सुख को पाकर
ढेर आशीष हमें दे जाते.
स्वर्गस्थ आत्मा की तृप्ति
होती है स्नेह लुटाने में.
केवल भाव ग्रहण करते हैं
खुश होते वो शीश झुकाने में.
कहते हैं कुछ लोग यही
गया-सिद्धपुर-बदरीनाथ
करके अंतिम-श्राद्ध यहाँ
मुक्त हो जाते हैं उसके बाद.
पितृऋण एक ऐसा ऋण है
जिसे चूका नहीं सकते हम
सच्चा-श्राद्ध यही होगा
उन्हें नमन करे जबतक है ये तन.
श्रद्धा की अभिव्यक्ति है
पितृपक्ष का पार्वण-पर्व
उनका आशीर्वाद मिले
उनको भी हो हमपर गर्व.
श्राद्ध सम्मपन्न तभी है जब थे जमीं पर तब तिस्कार नहीं किया ब्लकि आदर भाव से सम्मान दिया …जहाँ छोङ कर चले गये तब उनके नाम पर पकवान बनाकर खाना खिलाना …तो उनकी आत्मा होती व्याकुल है …हमारे वृद्ध सदस्य है उनके हृदय को मत दुखाओ …तो उनका आसीस रहने के बाद न रहने के बाद भी सदा रहेगा..
भारतीय परंपरा में मरे हुए आत्मा की पूजा का विधान है तो जिन्दा आदमी को कष्ट देना सामान्यजन सोच भी नहीं सकते ये कुकर्म तो वही लोग कर सकते है जिनकी सोच और मानसिकता घृणित हो .अपने माता पिता द्वारा पोषित संस्कार में हमें ये कभी नहीं सिखाया जाता है कि श्राद्ध के नाम पर ढोंग हो दिखावा हो .श्रद्धा के द्वारा किये गए कार्य ही श्राद्ध है जिसमे किसी भूखे को खाना खिलाना किसी जरूरतमंद की सहायता करना भी निहित है.पितृ या महालय के बारे में अपनी अभिव्यक्ति देना कोइ गलत नहीं है.
बेहतरीन सर जी, मुझे भी इस विषय पर चुकि इस रविवार को एक जगह कुछ सुनाना है तो आपकी रचना पढ़कर बहुत कुछ सिखने को मिला मुझे
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपने मेरी रचना को इस लायक समझा
बहुत सुंदर………और आकांक्षा जी ने बहुत सही कहा है कि हमें जीते जी पहले उनकी देखभाल करनी है तभी यह श्राद्ध पक्ष पूर्ण योग्यता रखता है …….आप से अनुरोध है आप अपने विचारों द्वारा और कवियो की रचना को भी अपना मार्ग दर्शन दिया करें यथासंभव……..
शुक्रिया सर रचनाओं के माध्यम से मिलूंगी और अपने विचार भी रखूंगी
I fully agree with Bharti Das. Talking of idealism is never practical. So customs and rituals must be accordingly seen and valued.
धन्यवाद सर आपकी टिप्पणी हमेशा मेरे मनोबल को बढाते हैं
Nice one…Thanks..
बहुत बहुत आभार सर
बहुत ही सुंदर रचना है. श्रद्धा से ही किसी काम को किया जाना चाहिए. पितृ पक्ष में तो ख़ासकर श्रद्धा का होना बहुत जरुरी है.
मेरी एक रचना आपकी नज़रों और बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में है “शराब (गजल)”. कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
धन्यवाद सर श्रद्धा से ही श्राद्ध होता है और अपनी भावनाओं के अनुरूप होता है