तेरी तस्वीर
टूटे-फुटे से
जर्जर पुराने फ्रेम में
तेरी तस्वीर न जाने
कहां लुप्त हो गई।
शायद धूल ने
इसे ढांप लिया
या फिर खुद फ्रेम ने
चेहरा ये बदल दिया
मिट्टी होकर रह गई
तेरी अतीत वाली
वो तस्वीर
धंूधली पड़ गई
जो सजाई थी मैंने
नये काठ के फ्रेम में
तेरी नये जमाने की
वो नई तस्वीर।
-ः0ः-
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नवलजी….मुझे लगता ऐसे ऊपर से फ्रेम तक ठीक था…अंतिम पंक्तियाँ विरोधाभासी हो गयी…….
थोड़ी रचना उलझ गयी है या खुद मै उलझ गया हूँ, पता नहीं पर भाव समझने में परेशानी हो रही है, थोडा और परिस्कृत करें आदरणीय नवल जी