आ गया मैं बर्बाद होने की कगार पर,
हुआ ना शक मुझे अपनों की मार पर,,
मीठी मीठी बातों में लुटता चला गया,
हँसता है जग सारा देख मेरी सार पर,,
हम साया बनकर साथ चले थे वो मेरे,
यकीन नहीं आता अपनी इस हार पर,,
कहते थे खुशियो का बगीचा सजा देंगे,
तन्हा हुआ बैठा हूँ उनके बनाये थार पर,,
टूटे घड़े कभी किसी को पार नहीं लगाते,
गैरो से ज्यादा अपने ही जी रहे है खार पर,,
बहुत खूब…………………..मनी जी।
thank you shitlesh ji……………..
अत्यन्त सुन्दर रचना मनी जी !!
thank you meena ji………………..
मनी जी…. ज़िन्दगी में बहुत कुछ ऐसा होता है…जो हमारे बस में नहीं होता…अपने हों या पराये वक़्त आईने की तरह सब की पहचान करवा देता है…हम उससे धोखा समझते हैं…पर हम यह नहीं जानते की वक़्त तो हमारी ही बात कर रहा है…वो हमें आगे से सावधान होने की बात कर रहा है…ताकि हम अपने को और दूसरों को पहचान कर आगे बढ़ें….बहुत दर्द भरा है रचना में…..भगवान् हमेशा आप को हिम्मत दे…और बुलंदी पे ले जाए….लाजवाब…..
bahut bahut dhanywad c m sharma ji apki iss khubsoorat partikirya ke liye……………….
बहुत उम्दा मनी …………………..शब्द माला गूथने में परिपक्व्व है आप !!
thank you sir……………sab aap se hi Sikh raha hu sir………………
बहुत सुन्दर और सार्थक
बहुत सुन्दर……………….
thank you abhishek ji……………..
100%true…very nice….Mani ji
thank you so much dr swati ji……………..
बहुत खुबसूरत…………………
thank you kajal ji………………