छट गया था अंधियार, ………………….,
………………………,क्यूँ की दिन था “शीतलेश” मंगलवार,
हो करके मैं घर से तैयार, ………………,
चला निपटाने कुछ सरकारी काम,
छट गया था अंधियार, ………………….,
………………………,क्यूँ की दिन था “शीतलेश” बुधवार,
………………………,क्यूँ की दिन था “शीतलेश” गुरुवार,
………………………,क्यूँ की दिन था “शीतलेश” शुक्रवार,
छट गया था अंधियार, चलने लगी थी मंद बयार,
चिड़ियों ने गाया अपना गान, लो हो गया है प्रातः काल,
था मेरा मनपसंद का वार, क्यूँ की दिन था “शीतलेश” शनिवार,
हो करके मैं घर से तैयार, हाँथ में छाता, फाईलो का भार,
चला निपटाने कुछ सरकारी काम,
फिर खड़ी थी लम्बी कतार, आने न वाली थी मेरी बार,
बाबू को बुलाया इस पार, दिया निकाल एक नोट हजार,
झटपट हो गया मेरा काम, कहा घर जाकर अब करो आराम,
पांच मिनट का था ये काम, पांच दिनों से सुख चैन हराम,
इसे ही कहते है सरकारी काम,
जाते जाते बाबू ने चार पंक्ति सुनायी:-
चप्पल-जूते घिस जायेंगे, जीना हो जायेगा दुश्वार,
फाईल तब तक नही सरकेगी, जब तक ना हो नोटों का भार,
ऐसे ही चलता सरकारी दफ्तर, इसे ही कहते है “सरकारी काम”…
शीतलेश थुल
बात बहुत हद्द तक आप की सही है….पर हर जगह ऐसा हो सरकारी काम यह भी सही नहीं…..आप के लिखने का अंदाज़ कमाल है…..बहुत ही खूब…………
आदरणीय शर्मा जी। मैं आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हू। इस कविता के माध्यम से मेरा उद्देश्य केवल व्यंगात्मक रूपी हास्य रस उत्पन्न करना है। और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को प्रकाशित करना है। बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी मेरी रचना आपको पसन्द आयी।
बहुत खूबसूरत प्रसंग को छुआ है आपने अति सुन्दर ………..कटाक्ष स्वरूप अभिव्यक्ति खूबसूरत है बहुतायत या ये कहिये की कुछेक चिन्हित विभाग ऐसे है जंहा आपकी रचना तर्क संगत सिद्ध होती है…….अपितु बब्बू जी के कथन से भी मैं पूर्णत : सहमत हूँ !
आदरणीय निवातियाँ साहब बिलकुल सत्य कहा आपने। आज भी ऐसे विभाग कार्यरत है जहा पर ये रचना तर्कसंगत साबित करती है। आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।
Nice sarcasm………………
Thank you very much Shishir Sir…………..
Sheetlesh ji….. bahut hi sundar aur yatharth ko bayan karti hui rachna….
स्वाति जी आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये तहे दिल से आभार व्यक्त करता हू। सहृदय धन्यवाद आपको।