कभी तो जान लो , मेरे मन की बात,
क्या हर बात बताना जरूरी है।
कभी तो रहने दो, राज़ को राज़ ,
क्या हर राज़ खोलना जरूरी है।
कभी तो दर्द बाँट लो मेरा,
क्या हर दर्द का इन आँखों में उतरना जरुरी है।
कभी तो समझो मेरे जजबातों को,
क्या हर बार बयाँ करना जरूरी है।
कभी तो सुन लो , जो मैं चाहती हू कहना ,
क्या बार-बार लफ्ज़ो का सहारा लेना जरुरी है।
कभी तो कर लो खुद से भी प्यार,
क्या हर बार मेरा जताना जरुरी है।
कभी तो निभाओं रिश्तों की इन कसौटियों को,
क्या हर अग्नि परीक्षा में , मुझे ही साबित करना जरुरी है।
शीतलेश थुल
बहुत ही भावपूर्ण कविता ,शीतलेष जी ।
आदरणीय बिमला जी। आपकी प्रथम प्रतिक्रिया पाकर अत्यंत ख़ुशी हुई। बस आप इसी तरह सराहते रहे और आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे।
very nice sir……..
Thank you very much Shrija mam……….
BAHUT ACHCHHI SAMVEDANSIL RACHNA EK PYAR AUR MUHABAAT KI BAAT WAH…
आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये मेरी ओर से सहृदय धन्यवाद शर्मा जी।
Wah wah very nice.. sheetlesh ji
बहुत बहुत धन्यवाद स्वाति जी।
शीतलेश जी ……. सुंदर भाव…… सुंदर रचना……
बहुत बहुत धन्यवाद काजल जी।
ह्रदय के भावो के कलम में बाँधना आपको बखूबी आता है ………………अति सुन्दर शीतलेश !
आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया हेतु सहृदय धन्यवाद निवातियाँ साहब।
बहुत बहुत खूबसूरत…….बेहद खूबसूरत अंदाज़…….
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।