मेरी याद्दाश्त पर इतना यकीन क्यों है तुझे,
खुदगर्ज़ हूँ,अपना कहा भी भूल जाता हूँ।
कोई मजबूरी नही रोक सकती वादा निभाने से,
बस यूँ है कि वादाखिलाफ हूं, ये हुनर है मेरा।
पहले ज़ुबान से गया,
फिर नज़र से गया
रफ्ता रफ्ता शहर से वो नदारद हुआ-
कसम खाने वालों की इस रवायत सेे मैं भी न बच पाया।
बहुत खूब………