*****************************************************
जमाने का ये क्या दस्तूर है
रोता हमेशा भूखा मजबूर है!
हर पल बहाता है खून पसीना
रोटी के खातिर ही मजदूर है।
दुनिया की रौशनी से ये दूर है
मेहनत का ही इनको गुरूर है।
हँसीं खुशी रहता अपनो के बीच
दिलो में अपनो के ये मशहूर है।
अभिषेक शर्मा अभि
*****************************************************
सुन्दर रचना……… अभिषेक जी ।
सुंदर रचना…….. अभि जी
सुन्दर अभिषेक जी… पर पहले जैसी तारतम्यता मुझे इसमें नहीं लग रही जैसी आपकी रचनाओं में होती है…….
बहुत खूब लिखा है आपने। चन्द पंक्ति बाटना चाहूँगा। कही पढ़ी थी मैंने :-
“जो कभी मौत से नहीं डरा , आज अपने बच्चो से डर गया। ”
“आज फिर एक मजदूर, खाली हाँथ घर गया। ।”
bahut sunder abhibyakti – bahut khoob.
अति सुन्दर ………..मजदूर की जीवन शैली का सटीक चित्रण !!