अक्सर लोग पूछते है मुझसे मेरा ठिकाना
मै ठहरा बेघर परिंदा नही कोई आशियाना
ठोकरे खाता फिरता हूँ सफर ऐ जिन्दगी में
पा जाऊं मंजिल जिस रोज़, वही चले आना ।।
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डी के निवातियाँ[email protected]@@
अक्सर लोग पूछते है मुझसे मेरा ठिकाना
मै ठहरा बेघर परिंदा नही कोई आशियाना
ठोकरे खाता फिरता हूँ सफर ऐ जिन्दगी में
पा जाऊं मंजिल जिस रोज़, वही चले आना ।।
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डी के निवातियाँ[email protected]@@
बेहद सुंदर……………..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शिशिर जी!!
वाह……जवाब नहीं……लाजवाब……….
बहुत बहुत धन्यवाद आपका बब्बू जी !!
वाह वाह वाह वाह वाह……………. शायरी का अंदाज पसंद आया
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुरेंद्र !!
Wah Sir….kya baat… very nice poetry
बहुत बहुत धन्यवाद आपका स्वाति !!
बहुत ही सुंदर……. बहुत खूब……… निवातिया जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका काजल !!
अत्यन्त सुन्दर…………………..!!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका मीना !!
क्या बात। क्या बात। क्या बात। …………………………बहुत खूब निवातियाँ साहब।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शीतलेश !!
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ…………………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद आपका विजय !!