भटकें हैं ऐसे होके दर-बदर यूँ
राह-ए-उल्फत में इंदर, अवारी ये कैसी
सुलगते हैं दिल में अरमान लाखों
है हर लम्हा अब, बेकरारी ये कैसी
न अक्स रहा वो न वो यादों का काफिला
फिर भी दर्द से रहा अब, यारी ये कैसी
जिंदा हैं हम नहीं जिंदगी है
मगर जी रहे हैं, लाचारी ये कैसी
… इंदर भोले नाथ…