कल बादल का एक छोटा सा टुकड़ा
बहती हवाओं के संग
पतझड़ के सूखे पत्ते की मानिन्द
मेरी छत पर आ गिरा
छुआ तो हल्के गीलेपन के साथ
रूह का सा अहसास था
रूह इसलिए…..,
क्योंकि वह दीखती कहाँ है ?
बस होने का अहसास भर देती है
सुनो……. !
तुम्हारी दुनियाँ में भी पतझड़ होता है ?
सुख-दुख , जीवन-मरण और पतझड
ये सब जीवन के साझी हैं
तुम……… ,
तुम भी नश्वर हो
फिर ये आदत कहाँ से लाए ?
अजर-अमर होने की .
“मीना भारद्वाज”
बहुत गूढ़ भाव प्रस्तुत किये है मीना जी। ………. behad umda !!
हार्दिक धन्यवाद निवातियाँ जी !!
bahut hi gahri rachna…………bahut acche
तहेदिल से शुक्रिया मनी जी !!
तृष्णा ख़तम…..संतुष्टि को अमर कर दिया…..बेकार में सूखे पत्ते की तरह उड़ता फिरता है………लाजवाब……..
हार्दिक धन्यवाद शर्मा जी !!
गूढ़ भाव ग्रहण किये बेहतरीन भाव………………..
तहेदिल से शुक्रिया सुरेन्द्र जी !!
मनुष्य की अतृप्त तृष्णा का सुंदर चित्रण।
डॉ.विवेक कुमार जी रचना पढ़ने और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद !!
अति सूंदर ……………………
हार्दिक आभार विजय जी !!
सुन्दर रचना……….. मीना जी ……
तहेदिल से शुक्रिया काजल जी !!
बेहतरीन रचना मैम……… बेहतरीन…………
मुझे आप की अमूल्य प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है .रचना पढ़ने और सराहने के धन्यवाद अलका जी !!