एक ऊंची लहर आती है, साथ बर्बादी लाती है,
पीछे तबाही का मंजर छोड़, साथ सबकुछ ले जाती है,
गगन चुम्भी इमारते, ये विशाल विशाल पेड़,
कल तक मेरे सामने, बनते थे जो शेर,
हिम्मत उनकी भी हार जाती है, जब एक ऊंची लहर आती है,
चाचा के चाय दूकान का तम्बू उड़ने लगता है,
सागर का खारा पानी, जब हिचकोले लेने लगता है,
आसमां को छूती पर्वत श्रृंखलायें भी डर जाती है,
जब एक ऊंची लहर आती है,
मौतों की मौजो पे बैठ, वो सबको गले लगाती है,
एक ऊंची लहर आती है, जो सुनामी कहलाती है …
शीतलेश थुल
bahut accahe sir……………………
Thank you very much Mani Sir…………….
Truly said…………………………
Thank you very much Nivatiyaan Sir…………….
क्रोध का रूप बहुत ही खूबसूरत
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
बेहतरीन………………………….. आदरणीय शितलेश जी
बहुत बहुत धन्यवाद कुशक्षत्रप साहब।
Beautifully written…………………………….
Thank you very much Vijay Sir……