मरकर भी ये सांस न छूटे
न मिलकर भी ये आस न छूटे
छूटना है तो छुट जाए ये ज़िन्दगी
पर ईश्वर से विश्वाश न छूटे
ज़िन्दगी की रेलगाड़ी में पहिये हो अगर टूटे फूटे
सिसक सिसक कर चलती गाडी की ये कहानी है अनूठी
मर गयी है इसकी आत्मा
और है दुःख के लावे फूटे
पर ईश्वर से विश्वाश न छूटे
दुःख की नगरी में कदम रखती है
और अंगारों पर चलती है
ज़िन्दगी की रग रग में
दुःख की ही नदियाँ बहती है
रो रो कर आसमान भी फूटे
पर ईश्वर से विश्वाश न छूटे
ईश्वर की ही देंन है यह सब
सोच सोच कर सहते हम सब
पर उसका न कोई विरोधी
चाहे हो वह कितना भी क्रोधित
दुःख के इस महासागर में
गोते लगाती सारी दुनिया
कोई न उसका विरोध करे
चाहे हो कितनी भी कमियां
न थकते वो ये सारे ज़ुल्म ढाते ढाते
पर ईश्वर से विश्वाश न छूटे ……
Beautiful and positive thoughts shrija jee
Thank you vivek ji
उम्दा भाव सम्प्रेषण…………………………….
धन्यवाद सुरेन्द्र जी….
बहुत ही खूबसूरत रचना …………………….
बहुत बहुत धन्यवाद आपका शीतलेश जी…..
bahut achhi rachna man mein ek biswash jagata hui ek prerna..
Thank you so much sir…..
very nice……………………
Thank you mani ji….
जीवन के प्रति सकारात्मक भावो का उम्दा सम्प्रेषण !!
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर…..
सही कहा आपने……..विश्वास में बहुत ताकत है…..बहुत खूबसूरत….
जी बिलकुल….. बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Beautifully written…………………………….
Thank you so much vijay ji…….