बह्र 1222 1222 1222 1222
हमारे बीच गर थोड़ी सी गफलत और हो जाती।
कहें क्या आप से कितनी फजीहत और हो जाती।
निभाते आप भी अपनी जुबाँ से हद सलीके की
*जहाँ सब कुछ हुवा इतनी इनायत और हो जाती*।।
महज मजहब किताबे क्यों समझते हो, वो नादानों
दिलों को भी समझ लेते तो जन्नत और हो जाती।।
न जाने और कितने शख्स फिर रूपोश हो जाते
अगर खबरों में थोड़ी सी हकीकत और हो जाती।।
गरीबो का निवाला भी हजम नेता नहीं करते
अगर नीयत में उनके कुछ शराफत और हो जाती।।
दिवाली ईद हम फिर साथ मिलकर ही मना लेते
हमारे मुल्क में थोड़ी मुहब्बत और हो जाती।।
बहुत रक्खा है मैंने पास तेरी आरजू का सुन
नहीं तो इस ज़माने से बगावत और हो जाती।।
मेरे संयम को तुमने बुजदिली माना नहीं होता
मेरे अंदर भी थोड़ी सी शराफत और हो जाती।।
गले मिलती ग़ज़ल भी गीतिका से क्यों न महफ़िल में
जुबानों में अगर थोड़ी सलासत और हो जाती।।
मिला है साथ तेरा हर तरह से “नाथ” जीवन में
तमन्ना एक प्यारी सी शरारत और हो जाती।।
!!!
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सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’
(यह गजल मेरी स्वरचित एक तरही मुशायरे का अंश है जिसमे
जहाँ सब कुछ हुआ थोड़ी इनायत अउर हो जाती पर रचना करना था)
सुरेंद्र साहब इसमे कोई दो राय नहीं की आपकी कविता दिल पर एक अमिट छाप छोड़ती है साथ ही आपकी शब्दो पर पकड़ भी बखूबी है l अति सुंदर रचना l
बहित बहित आभार आदरणीय राजीव जी, शुक्रिया आपका
सुरेन्द्र जी आपकी ग़ज़ल बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी.है !!
हृदय तल से आभार मीना जी आपको
bahut hi umda…….behtarin…………………
मनिंदर जी धन्यवाद मित्र आपको, ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहे
यह गजल तरही मुशायरे का है जिसमे सभी शायर को
*जहाँ सब कुछ हुवा इतनी इनायत और हो जाती*
को लेकर गजल कहनी थी, इसे मतले में प्रयोग में नहीं लाना था पर बिना इसके प्रयोग किये गजल शामिल भी नहीं की जा सकती थी
मेरा जो प्रयास था उसे आप सभी मित्रो के समक्ष रखा, आशीर्वाद की आशा में
मेरे संयम को तुमने बुजदिली माना नहीं होता
मेरे अंदर भी थोड़ी सी शराफत और हो जाती।। बहुत अच्छा
धन्यवाद सर्………………………!
सुरेन्द्र नाथ जी।
ह्रदय तल से आभार आदरणीय डॉ विवेक जी
सुरेंद्र साहब इसमे कोई दो राय नहीं की आपकी कविता दिल पर एक अमिट छाप छोड़ती है साथ ही आपकी शब्दो पर पकड़ भी बखूबी है l अति सुंदर रचना l
रचना पसंद करने और इतनी खुबसूरत प्रतिक्रिया के लिए आभार राजीव गुप्ता जी
कुशक्षत्रप साहब। मैं जितनी भी तारीफ़ करू वो कम पड़ जायेगी। केवल मेरा प्रणाम स्वीकार करे इस अतिउत्तम गजल हेतु।
आपके स्नेह और प्यार के लिए धन्यवाद और नमन संग अभिनन्दन
बहुत उम्दा सुरेन्द … शिल्प से सुसज्जित यथार्थ का खाका तैयार कर उसके प्रति सचेत होने का सन्देश देती अच्छी रचना !!
आपके स्नेह और प्यार के लिए धन्यवाद और नमन संग अभिनन्दन
बेहद बेहद बेहद लाजवाब…………
आदरणीय बब्बू जी आपकी प्रेम के लिए कोई शब्द नहीं शिवाय आभार के।
सुरेंद्र जी बहुत ही बेहतरीन रचना…………..
आदरणीया काजल जी आपकी निरंतर प्रत्रिक्रिया मेरा मान बढाती है
शिल्प पक्ष बेहतरीन भाव पक्ष का तो कहना ही नहीं, एक मझे हुए शायर की भाति आपने शब्दों से समा बाध दिया है
आपके इस सम्मान नवाजी से दिल बाग़ बाग हो गया
वअह वअह लाजबाब, बेहतरीन गजल का मुजाहिरा
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गौरव जी
Beautiful feeling a and words Surendra. Great work.
ह्रदय तल से आभार आदरणीय शिशिर सर, आशीर्वाद बनायें रखें
आप साहित्य जगत की शान हैं l
आपके मुख मंडल से चला हर शब्द अतुलनीय होता है l
बेमिसाल गज़ल आदरणीय !
धय्न्य्वाद आदरणीय आनन्द पाण्डेय जी, मुझे आपकी प्रतिक्रिया मिल गयी, समझिये जहाँ मिल गयी
BAHUT ACHHA PRAYASH BAHUT HI UMDA…… DER KE LIYE KHED HAI. THANKS.
आदरणीय बिंदु जी ह्रदय से आभार आपका
कुछ प्रतिक्रिया दिखाई नहीं दे रही, शायद कुछ प्रॉब्लम है
सुरेन्द्र सर हमे उतनी हिन्दी का ज्ञान तो है नही ।। लेकिन आपने जो शब्द इस्तेमाल किया है काबिले तारीफ है ।। आपकी हिन्दी पर पकड़ काफी अच्छी है ।।। हमे भी आसानी से समझ व आ गयी और दिल को व छू गयी ।।।।।।।
ऐसे ही लिखते रहिये और हमे आपकी और भी कविताओ का इंतज़ार रहेगा ।।।।।
धन्यवाद मोहित पाण्डेय जी, हम भी काम चलाऊ ही हिंदी जानते है मित्र
Very..Very Nice Sir ji…Thanks…
आपका आशीर्वाद मिलगया, मई धन्य हो गया
अति सुंदर रचना …………………..
आभार मंप्ज जी…………………
लाजबाब, बेहतरीन, सर जी क्या कहने
आभार आपका……………………………