कविता
छुक छुक देखो करे रेलगाड़ी |
जाये शह्र, गांव, राह पहाड़ी ||
भोंपू ज़ोर ज़ोर बजा भागती |
कितनी तेजी से भागी आती ||
अपनी मंजिल पर जा कर रुके |
विशाल रूप देख कर सभी डरे ||
बच्चे देख सभी हाथ हिलाते |
आयी गाड़ी सबको बतलाते ||
भेद भाव किये बिना ले जाती |
मुसाफ़िरों के दिल को है भाती ||
जान पहचान सबसे करवाये |
याराना एक दूजे संग बढ़ाये ||
बाहरी सतह कठोर कितनी |
नर्म लगे है अंदर से उतनी ||
जीने का मतलब है सिखलाती |
फ़र्ज़ निभाना ऐसे बतलाती ||
छुक छुक देखो करे रेलगाड़ी |
जाये शह्र, गांव, राह पहाड़ी ||
मनिंदर सिंह “मनी”
वाह…..क्या बात है….बेहद उम्दा…..रेलगाड़ी सच में भारतीय है…बिना भेद भाव…जात पात…बिना जान पहचान…..हर कोई किसी से भी बात करता…और नए रिश्ते बनते हैं…. सही कहा आपने…..लाजवाब….
thank you so much sir………………….
बेहतरीन………………… आदरणीय मनिंदर जी
thanks surendr ji……………………
Nice poem Mani ji .
thank you meena ji…………….
बहुत खूब मनी जी आपकी कविता पड़ते हुए दिल और दिमाग में शब्दो के चित्रण उभर रहे थे ,बेहतरीन रचना l
बहुत ही खूबसूरत रचना………………………………….
bahut bahut abhar sir apka……………………….
बहुत ही खूबसूरत ।
thank you so much vivek ji……………..
बहुत खूब मनी जी आपकी कविता पड़ते हुए दिल और दिमाग में शब्दो के चित्रण उभर रहे थे ,बेहतरीन रचना l Nice poetry
tahe dil abhar apki iss hoslafazai ke liye…………………..
बहुत खूब मनी जी। आपकी रचना में जीवन का सार छुपा है। मुझे मेरे द्वारा लिखित कविता “रेलगाड़ी ” याद गयी।
thank you so much shitlesh ji
अति सुन्दर मनी ….यह आपकी बेहतरीन रचनाओ में से एक है ….कविता की नयी विधा के रूप में रचित यह कविता बाल रूप से लेकर प्रत्येक वर्ग को लुभाने वाली है ! रचना का शब्द संयोजन और भावनात्मक रूप इसकी मुख्य विशेषता है !!
मनी जी आपकी रेलगाड़ी में चढ़ कर घुमने का मन हो रहा है
बहुत खूब…….. बहुत बढ़िया ……
टिकेट ले कर घुमियेगा…………….हाहाहहाहा……बहुत आभार आपका काजल जी…………………….