1)
न होता दुःख
गर समझ पाता,
स्वार्थी वादो को.
2)
वादो की नाव
डगमगाने लगी,
मंजिल दूर.
3)
नयन उठे,
बेरुखी थी वादो में
बरस गये.
4!)
रात्रि या दिन
क्या फ़र्क पड़ता है,
सूने वादो से
5)
घना अँधेरा
हर कोना है सूना,
वादे है मौन
6)
ज़िंदगी बता
क्या खता रही मेरी,
वादे जाे रूठे
7)
कदम उठे
रोका था वादो ने,
ठहर गये.
8)
सांस घुटती,
रिश्तों की दीवारों में,
वादे जाे चलें.
9)
स्वार्थ के वादे
समझ नही पाए
मान घटाएँ
10)
घाटे का सौदा
वायदा कारोबार
दे गया धोखा
कपिल जैन
बहुत ही सुन्दर……….वाह……..
lajwab sir……………………….
बेहतरीन रचना…………………………….
Beautiful Kapil………………..!!