आ जाओ तुम बरखा रानी
सूरज का पहरा कड़ा है
यह अपनी पर अड़ा है
सरहद पर प्रहरी खड़ा है
तपन ने सबको झकड़ा है
बुलाते तुम्हे सब व्यथित प्राणी
आ जाओ तुम बरखा रानी
दूर दूर तक धरती उघाड़
दिखती बस कांटों की बाड़
तपन बढ़ाते रेती के पहाड़
गर्मी के थपेड़े देते पछाड़
सूरज करता अपनी मनमानी
आ जाओ तुम बरखा रानी
करूण पुकार सुन बादल आए
उमड़ घुमड़कर खूब छाए
सभी प्राणियों के मन को भाए
फिर भी ना ये नीर बरसाए
अब तो कर दो धरा पर पानी
आ जाओ तुम बरखा रानी
छा गई अब घटा घनघौर
नाची हिरणें नाचे मोर
पवन पुरवाई ने मचाया शोर
इन्तजार है आए नया दौर
हो जाए इन्द्रजदेव की मेहरबानी
आ जाओ तुम बरखा रानी
पानी यूं बरसा गई
मनवा को तरसा गई
ज्यों-ज्यों बूंद लगी तन पर
त्यों-त्यों प्रहार हुआ मन पर
छिड़ गई विरहन की फिर कहानी
आ जाओ तुम बरखा रानी
हरियाली तुम खेतों में कर दो
ताल-तलैया नीर से भर दो
धरा को अति पावन कर दो
नाडी बावडियों में अमृत भर दो
वसुन्धरा की चुनरिया कर दो धानी
आ जाओ तुम बरखा रानी
रामगोपाल सांखला ”गोपी”
nice write sir………………….
बेहतरीन……………………………………
बहुत सुंदर………अब तो पिला दो धरा को पानी ….ऐसा सोच के देखिया ज़रा कैसे लगता आपको ऊपर
.अति उत्तम सृजन आदरणीय
बहुत सुंदर………रचना
बहुत ही खूबसूरत रचना………………………………….