किसी के रोके से रुकता नहीं वक्त,
किसी के झुकाये झुकता नहीं वक्त,
अपनी ही मदमस्त चाल चले जा रहा,
कभी भी कुछ भी पूछता नहीं वक्त,,
ना किसी राजे का, ना गरीब का हुआ,
सदैव आगे चले पीछे मुड़ता नहीं वक्त,
अचेत विश्व में हर कोई उसकी चाल से,
तबदीली की विधि को भुलता नहीं वक्त,
ना रंग, ना कोई आकार, ना कोई भेद,
कितना भी चाहो पर बंधता नहीं वक्त,,
वक्त……………..मनिंदर सिंह “मनी”
बहुत खूब………………..
thank you sir……………………..
अति उत्तम सृजन।
thank you abhishek ji…………….
क्या बात है। बहुत ही बेहतरीन ……………………
thank you so much shitlesh ji………………..
Bahut Khubsurat Mani……………!!
thank you so much sir………………
ये तो बहुत ही सही फरमाया आपने……… लाजवाब……
thank you so much kajal ji…………………..
बेहतरीन…………………………. आदर्णीय मनिंदर जी
bahut bahut abhar surendr ji apka iss pyar ke liye…………………………….
Badiya………………..
thank you so much……………….
बहुत बढ़िया मनीजी…… मुझे लगता ना ख़ुशी ना दुखदर्द कभी या कुछ पूछता नहीं वक़्त और शायद बेहतर होता……बस आप चलते चलो….गायब मत हुआ करो… हा हा हा ….
bahut bahut abhar apka sir apke iss sujhaw ke liye…….meine change kiya hai ek baar dikiye ga jaroor……………….gayab nahi hota sir ab ……………………hahahahahaha
बहुत बढ़िया है….हा हा हा… मेरे कहने का तात्पर्य दरअसल था कि आपने लिखा न “ना ख़ुशी ना दुखदर्द पूछता नहीं वक़्त” में “ना ख़ुशी ना दुखदर्द कुछ पूछता नहीं वक़्त” या “ना ख़ुशी ना दुखदर्द कभी कुछ पूछता नहीं वक़्त” ऐसे ज्यादा अच्छा लगता… आपने अब जो किया है वो और भी अच्छा हो गया… गुड….
thank you sir………………………….
बहुत ही सुंदर रचना. विषय के साथ साथ साहित्य भी जुड़ जाएगा तो फिर आप बहुत आगे जाएंगे.
तहे दिल आभार विजय जी……बस आप मार्गदर्शन करते रहे…….
मनी जी वक्त जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आपने बहुत ही खूबसूरत रचना लिखी है l
thank you rajeev ji………………