मैं डरता हूँ तन्हाइयो से, अकेलेपन से,
पर मैं डरपोक नहीं, कायर नहीं हूँ मैं,
ठीक है मैं डरता हूँ, तेरे ख्यालो से,
तुझसे जुडी हसीन यादों से ,
पर मैं डरपोक नहीं, कायर नहीं हूँ मैं,
माना की मैं डरता हूँ बीते पलों से,
तुझसे जुडी तेरी हर इक बातों से,
पर मैं डरपोक नहीं, कायर नहीं हूँ मैं …
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शीतलेश थुल।
आपके भाव कहने का तरीका पसंद आया। बढ़िया आदरणीय शितलेश जी
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु सहृदय धन्यवाद कुशक्षत्रप साहब।
बहुत सुन्दर ……………………
बहुत बहुत धन्यवाद अभिषेक जी।
very nice sir…………………….
Thank you very much Mani Sir………
जज्बातो को पेश करने का अनूठा अंदाज ….अति सुन्दर शीतलेश !!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।
शीतलेश जी आपकी रचना बहुत ही निखर गई है…… बहुत खूब
आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिये सहृदय धन्यवाद काजल जी।
डरने की कोई आवश्यकता नहीं है. बहुत सुंदर……………………
बहुत बहुत धन्यवाद विजय जी।
बहुत ही खूब……..
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।