- तेरे पैरो के निशाँ ढूंढते , चलता चला हूँ मैं,
- इसी उम्मीद में शायद मिल जाये तू कही,
- रास्ते का पत्थर पीठ में लादे चलता चला हूँ मैं,
- शायद इसी में तो नहीं तू कही,
- आसमां की ऊंचाई, समन्दर की गहराई तक,
- गोता लगा चलता चला हूँ मैं,
- शायद प्यास बुझाता तू, मिल जाये यही ,
- जंगलो की ख़ाक छानकर, पर्वतों के शिखर पर चढ़ता चला हूँ मैं,
- शायद तेरा यहाँ घर तो नहीं !
- पक्षियों से दोस्ती कर, हवाओं से पूछने लगा हूँ मैं,
- शायद इन्हें तूने कुछ बताया तो नहीं,
- मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, पूजा-पाठ वंदना कर,
- तीर्थ यात्रा पे चलता चला हूँ मैं,
- अब तो बता दे तू मुझे, मिलेगा भी या नहीं,
- एक ख़त जो मेरी बेटी ने, तेरे नाम लिखा है,
- वादा किया है उससे, तुझे साथ लेते आना है…
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- शीतलेश थुल
बहुत खूबसूरत जज्बात ………….अति सुन्दर !!
बहुत बहुत धन्यवाद निवातियाँ साहब।
khubsoorat rachna……..bhavnaprad…..
बहुत बहुत धन्यवाद अंकिता जी।
बहुत खूबसूरत………..
बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
अति सुन्दर ………………………………………….
बहुत बहुत धन्यवाद सिंह साहब।