समुद्र की लहरों से
अनसुनी आवाज निकलती
कहना भी चाहें लहरें कुछ
जुबां इनमें कहाँ होती
मैंने समझी मैंने जानी
इन लहरों की आवाज
समुद्र से निकलकर
अस्तित्व ढ़ूँढ़ती लहर
दूर समुद्र से उठती
उन्मादित उत्साहित लहर
समुद्र से उछल कर
छूना चाहे आकाश
समुद्र किनारे आती लहर
पुकार रही मुझे हर प्रहर
पूछ रही बस एक सवाल
क्या तुम करोगे मुझे आजाद ?
मैंने कहा लहर से
तुम लहर न होती
अगर इस समुद्र में
डूबी हुई न होती
मैंने कहा लहर से
क्यों होना चाहती आजाद
समुद्र से तेरा अस्तित्व
फिर क्यों छोड़े तू इसका द्वार
लहर ने भी बोल दिया
मेरा भी है कुछ अधिकार
चाहूं मैं भी अपना
एक घर द्वार
हो गया खामोश मैं
यह सोच कर कि
नादान है ये लहर
होना चाहे जो आजाद
कहीं अस्तित्व की तलाश में
खो ना दें अपना घर संसार
अच्छा लिखते है आप, यूँही लिखते रहे…………
thnqqqq……. sir
अति सुन्दर …………….।।
बहुत सुंदर लिखा है…….
अति सुन्दर …………….।
बहुत बढ़िया……………..
अति सुन्दर ………………………………..
आप सभी का धन्यवाद !!!!!!!