हार किसी को भी स्वीकार नहीं होती
जीत मगर प्यारे हर बार नहीं होती
एक बिना दूजे का, अर्थ नहीं रहता
जीत कहाँ पाते यदि हार नहीं होती
बैठा रहता मैं भी एक किनारे पर
राह अगर मेरी दुशवार नहीं होती
डर मत लह्रों से, आ पतवार उठा ले
बैठ किनारे, नैया पार नहीं होती
खाकर रूखी-सूखी, चैन से सोते सब
इच्छाएँ यदि लाख-उधार नहीं होती
वाह्ह्ह्ह्ह् बहुत ही सुन्दर आदरणीय ।
well said……………very Inspirational …….!!
बहुत ही सुंदर रचना.
अगर आप एक बार में इतनी रचनाएँ प्रकाशित करेंगे तो सभी पाठक आपकी रचनाओं का पूरा आनंद नहीं ले पाएंगे. अतः आप इस बात पर थोड़ा ध्यान दें ताकि रचनाओं का पूरा आनंद उठाया जा सके.
जीवन के यथार्थ का सजीव चित्रण साथ ही प्रेरणादायी भी।
प्रेरणादायक……………………………………
मै भी विजय जी से सहमत हूँ, आप एक दिन में इतनी रचनाये न दें। एकही रचनाकार की सभी रचनाये पढना बोरिंग हो जाता है